तितली सी हसीन जिंदगी.. चाहिए संयम और रुचि का मेल…वरना सूखी रेत
घने घास के गुच्छों के बीच उगे छोटे से पौधे की हरी डंडी, जिस पर आकार-प्रकार में उसी की तरह दिखने वाले पीले रंग वाले फूलों को तितली शायद अपनी जुड़वां समझकर मंडराती रहती थी। गांव में उन कुछेक तितलियों को पकड़ने के पीछे गुजरती बचपन की वो कई दुपहरियां ! और आखिर में पकड़ना तो दूर उन्हें छू तक न सक पाने की कसक लिए खाली हाथ लौटा थका हारा मन, या कि फिर तितलियों के प्रजनन काल वाले ऐसे ही किसी मौसम मसूरी के एक घने जंगल में छोटी-बड़ी, रंग-बिरंगी हजारों अनगिनत तितलियों के झुंड को एक साथ, एक ही दिशा में भागते हुए देखकर हैरान हुई आंखें!
गुलाब के फूल की पत्तियों पर बैठी तितली के पंखों पर अनायास पड़ी नजर कई पुरातन यादों का अद्भुत पुनरावर्तन करवा रही हों जैसे एक ही पल में। सांस रोककर चुपके से पंख और पंखुड़ियों की बातचीत सुनने का सार यह है कि -प्रकृति के सुदीर्घ धैर्य और सुंदर सोच के परिणाम से होता है फूलों का नाजुक सृजन। महिलाएं जूड़े में खोंसकर, प्रेमी जोड़े प्यार के इज़हार की निशानी मान सूखी पत्तियों को किताब के पन्नो बीच संजोकर, स्वाद के शौकीन गुलकंद बनाकर, ईश्वर की भक्ति-भाव वाले लोग अगरबत्ती, धूपबत्ती को सुगंधवासित करने में और खुशबू के शौकीन लोग देह, वस्त्र गमकाने के लिए अर्क, इत्र बना फूल की पंखुड़ी और गंध की बूंद-बूंद रस निचोड़ कर उपयोग करने में ही फूलों के खिलने की सार्थकता समझते हैं।
और जो कोई परे हों इन संलिप्ताताओं से तो डाल पर खिले किसी फूल की खुशबू, रंग और अदाओं से विरत रह उस पर प्रशंसा भरी एक निगाह तक खर्च न करने का अपराध करने से भी नहीं चूकते कई इंसान। लेकिन ‘तितली’ नाम शब्द के विस्तार मात्र आकार के पंखों वाली छोटी जीव! जिसकी आंखें कहां पर हैं! कहां पर दिल है! कहां दिमाग और हाथ कहां पर हैं? कुछ नहीं पता! फिर भी ईश्वर ने उसे समझ इतनी ज्यादा बख़्शी है कि बिना कोई नुकसान पहुंचाए सबसे सुंदर उपभोग तितली ही करती है फूल-पत्तियों का। थोड़ी- थोड़ी देर के लिए हर फूल से बोलती-बतियाती यह नन्ही सी जान पंद्रह-बीस दिनों के जीवन चक्र में ही मुंह मोड़ लेती है दुनिया से। फूल और तितली के बीच हल्की हवा जैसे चुंबन और मधुर रस की मदिरा के ख़ामोश लेन-देन वाले ‘शब्द के शोर पर मौन के महत्व’ को दर्शाते दृश्य स्थिर होकर समझाते हैं कि आनंद को महसूस करने की अवधि तितली के जीवनकाल जैसी ही सीमित होती है। सुखद से सुखद समय भी तटस्थता से शामिल होकर एक ऊब ले आता है जीवन में। तितली और फूल जैसी संयमित और उत्तम रुचियों का मेल समझने में ही जीवन सौंदर्य है, वरना लंबी सी लंबी जिंदगी भी रह जाती है समंदर किनारे की सूखी रेत सी वीरान।
प्रतिभा की कलम से