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जंगल बचाने को थानों क्षेत्र में शुरू हुआ चिपको आंदोलन

हिमांशु चौहान
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देहरादून जौलीग्रांट एयरपोर्ट (jolly grant airport) विस्तार परियोजना के तहत देहरादून के रायपुर थानो क्षेत्र के 10 हजार पेड़ों (ten thousand tree) को काटे जाने का प्रस्ताव है। सरकार के इस कदम पर देहरादून के कई संगठन और नागरिक जॉलीग्रांट एयरपोर्ट को अन्तर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने के नाम पर जंगल काटने को लेकर गुस्सा हैं और इस निर्णय के खिलाफ प्रदर्शन (protest) कर रहे हैं।


देहरादून में 18 अक्टूबर को थानों क्षेत्र, जॉलीग्रांट एयरपोर्ट पर बड़ी संख्या में विभिन्न सामाजिक संगठनों, नागरिकों और छात्र संगठनों ने प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने ह्यूमन चैन बनाई और जॉलीग्रांट एयरपोर्ट तक मार्च निकालकर विरोध किया। पेड़ों से चिपक कर लोगों ने पेड़ काटने का विरोध किया। इस आंदोलन को चिपको आंदोलन का नाम दिया गया है।
थानों क्षेत्र के चिपको आंदोलन (chipko movement) में शामिल लोगों का यह मानना है कि सरकार का यह निंदनीय कदम है। उत्तराखंड की सरकार पर्यावरण व जैव-विविधतता को लेकर गंभीर नहीं है, जिसके चलते इस तरह के निर्णय लिए जा रहे हैं। इतना ही नहीं केंद्र व राज्य की भाजपा सरकार उत्तराखण्ड की विरासत हमारे जंगल, पहाड़, वन आरक्षित क्षेत्र को खत्म करने पर तुली हुई है। पहले भीमकाय जल विद्युत परियोजनाओं, ऑल-वैदर रोड़, अनियोजित विकास के कारण लाखों पेड़ों को नष्ट किया जा चुका है। सर्वोच्च न्यायालय भी इस पर सवाल कर चुका है। उत्तराखण्ड का पर्यावरण के क्षेत्र में अहम योगदान है, जिसे हमारी राज्य व केंद्र की सरकारें लगातार नज़रअंदाज़ करती आयी हैं। सरकार पर्यावरण की हमारी विरासत को ख़त्म करने पर तुली हुई है। इसके असंख्य उदाहरण हैं। यह सब करने से विकास की ओर नहीं बल्कि विनाश की ओर जा रहे हैं।

243 एकड़ वन भूमि एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया को देने का है फैसला

विरोध प्रदर्शन में शामिल प्रदर्शनकारियों ने बताया कि ‘किसी भी हाल में ऐसे विध्वंसकारी प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन नहीं होने देंगे, थानों जंगल अनमोल है, इसमें मौजूद हर पेड़ मायने रखता है’। मालूम हो कि उत्तराखंड वन विभाग और उत्तराखंड सरकार ने शिवालिक ऐलिफेंट रिज़र्व की 243 एकड़ वन भूमि को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) को देने का फैसला लिया है। प्रस्ताव के मुताबिक इसमें अलग-अलग प्रजातियों के कुल 9745 पेड़ काटे जाएंगे। इनमें शीशम (2135), खैर (3405), सागौन (185), गुलमोहर (120) सहित 25 अन्य प्रजातियां शामिल हैं।

धरती को नष्ट करने वाला विकास नहीं चाहिए

भारत ज्ञान विज्ञान समिति के उत्तराखण्ड प्रदेश अध्यक्ष व लम्बे समय से दून वैली के पर्यावरण पर नजर रखने रहे विजय भट्ट (Vijay Bhatt) बताते हैं कि सरकार के द्वारा किया जाने वाला यह विकास पर्यावरण नियमों के विरुद्ध है। हम को वहनीय विकास चाहिए, जिस को धरती सह पाए, यह जंगल सह पाए। उक्त विकास सहनीय विकास नहीं है। पहले हमने नहरें खत्म की देहरादून की। नहर का अर्थ सिर्फ पानी नहीं खत्म हुआ, उसमें रहने वाले जीव वनस्पति अनेकों प्रकार की वनस्पति नहरों उगती है जो कि सिर्फ नहरों में ही उग सकती हैं। हमने देहरादून की सड़कों के नाम पर नहरों को ख़त्म किया, देहरादून के पर्यावरण का पहले ही बहुत नुकसान कर चुके हैं। विकास जो होता है सिर्फ मनुष्य जीवन के लिए नहीं होता है। विकास सभी के लिए होता है और यह जो रास्ता है सब के विकास का नहीं कुछ लोगों के विकास का है। बहुत से जीव जंतुओं का यह विनाश करता है, अगर हम धरती को माँ मानते हैं तो यह पेड़-पौधे, जीव-जंतु यह सब खूबसूरती, उसकी संतानें हैं और इस को नष्ट यानी धरती माँ जिससे जीवन है, उसको नष्ट करना है ।

सरकार की दलील झूठी, थानों के जंगल सघन

एसएफआई उत्तराखण्ड के अध्यक्ष बताते है कि राज्य देहरादून को अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने की बात सरकार की तरफ से हो रही है, जो कि बिल्कुल गैरजरूरी है। क्योंकि राज्य में पहले ही पंतनगर में अंतराष्ट्रीय हवाईअड्डा बनना प्रस्तावित है। उत्तराखंड जैसे राज्य में दो-दो अंतरष्ट्रीय हवाई अड्डे बनाने का अर्थ यहां पर विनाश को बुलावा है। साथ ही यह झूठी दलीलें भी सरकार दे रही है कि थानों के जंगल घने नहीं हैं, उनके अंदर वन्यजीवों का कोई मूवमेंट नहीं है। यह बातें बिल्कुल गलत हैं क्योंकि थानों के जंगल बहुत ही सघन और जैव विविधता से भरे हुए हैं। पहले से ही स्थित हवाईपट्टी में भी काफी जानवर आना आमबात है। राज्य से लगा सहारनपुर सरसावा में हिंडन एयरबेस है, जहां से लड़ाकू विमान उड़ान भरते हैं। देहरादून व सहारनपुर की सीधी दूरी चीन अधिकृत तिब्बत सीमा से लगभग बराबर ही है।

हजारों पेड़ काटने की तैयारी

सीपीआई (एम) उत्तराखण्ड राज्य सचिव राजेंद्र सिंह नेगी (Rajendra Singh negi) कहते है कि उत्तराखंड के परिपेक्ष्य में जल, जंगल, जमीन के सवाल बहुत महत्वपूर्ण है परन्तु प्रदेश व केन्द्र सरकार इन सवालों को नजरअंदाज कर रही हैं। भीमकाय बाधों, आल वेदर रोड़, रेलवे व अनियोजित विकास के नाम पर पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचा दी गई है। लाखों पेड़ों को नष्ट किया जा चुका है। देहरादून में एयरपोर्ट विस्तार के नाम पर हजारों पेड़ों को उजाड़ने की तैयारी है, सकरार का यह कदम पर्यावरण विरोधी है

ऐसे तो राज्य में खत्म हो जाएंगे वन

उत्तराखण्ड कांग्रेस पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकान्त धस्माना (surykant dhasmana) ने इस मुद्दे पर अपना दृष्टिकोण रखते हुए कहा कि विकास सतत प्रक्रिया है। विकास के रास्ते में यह सारी बधाऐं आती हैं, सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए थी कि जिससे भरपाई हो। चारधाम परियोजना के नाम पर लाखों पेड़ काटे गए, राज्य में बड़ा अभियान चलाते, उसमें वनीकरण करते। राज्य में वनीकरण अभियान चलाना चाहिए था। लगातार पेड़ कटते जा रहे हैं। उसी प्रकार से एयरपोर्ट का विस्तार होना राज्य के लिए जरुरी है। लेकिन, जो 10 हजार पेड़ कटेंगे, उनकी जगह पेड़ कहां लगाए जायेंगे। अगर इसी तरह से वन कटते रहेगे और पेड़ लगाएंगे नहीं तो ऐसी स्थिति हो जाएगी कि राज्य में जो 47% वन है वो घटकर 20% भी नहीं बचेगा। विकास की प्रक्रिया चलती रहनी चाहिए। लेकिन, विकास के लिए पेड़ कटते हैं तो 10 गुना पेड़ लगाए जाने चाहिए।

डोईवाला क्षेत्र के मौसम में होगा भारी बदलाव

पूर्व कुलपति गढ़वाल विश्वविद्यालय व इकोलोजिस्ट प्रो एसपी सिंह (ex VC garhwal university pro so Singh) कहते हैं कि बड़ा सवाल तो यह है कि क्या अन्तराष्ट्रीय एयरपोर्ट की जरूरत है? सरकार कहती है कि हमने पर्यटन को 10-15 गुना आगे बढ़ाया है। लेकिन, क्या हम उससे पलायन को रोक पाए हैं? यहां पर अन्तराष्ट्रीय एयरपोर्ट की बहुत ज्यादा आवश्यकता नहीं है, मात्र 4 से 5 घण्टे में टैक्सी से भी दिल्ली से देहरादून आ सकते हैं। साथ ही हवाई सेवा में भी यदि पूरा समय जोड़ा जाए तो औसतन 4 घंटे ही लगते है तो फिर इस विकास का क्या फायदा है।
थानो रेंज में 10 हजार से अधिक पेड़ों की कटाई न केवल हाथी गलियारों को प्रभावित कर सकती है, बल्कि इस क्षेत्र की पर्यावरण-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को भी प्रभावित कर सकती है। यहां पेड़ों के कटान से वन में मौजूद हाथी, गुलदार, चीतल, सांभर व अन्य वन्य जीवों के भविष्य के लिए बड़ा खतरा पैदा होगा। यही नहीं हवाई अड्डे के विस्तार के लिए दी जाने वाली जमीन राजाजी नेशनल पार्क के इको सेंसेटिव जोन के दस किलोमीटर के दायरे में पड़ती है। इसके तीन किमी के दायरे में एलीफैंट कॉरिडोर है, इतनी भारी संख्या में पेड़ों के काटने की वजह से डोईवाला क्षेत्र के मौसम में भारी बदलाव होगा।
पर्यावरण और वनों के विनाश पर उत्तराखंड में विकास का कोई मॉडल नहीं हो सकता, उत्तरखंड के विकास के लिए यह अतिआवयश्क है कि राज्य सरकार नीतियों को बनाते हुए सबसे पहले यह ध्यान रखे की वह पर्यावरणीय दृष्टिकोण से कितना सही है।

(लेखक डीएवी कॉलेज देहरादून में पत्रकारिता के छात्र हैं। साथ ही उत्तराखंड में छात्र आंदोलन में सक्रिय भूमिका रखते हैं)

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