Sat. Nov 23rd, 2024

चुनावी चटकारा … वरिष्ठ कवि जीके पिपिल

जीके पिपिल
देहरादून।

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1-

पड़ रहे डाके वोट के हो रही लूट खसोट
वोटर लहूलुहान है अब तक खाकर चोट
साम दाम दंड भेद में मशगूल हैं ठेकेदार
चिंता में सब लोग हैं बिखर न जायें वोट।

2-

आज वोट की चाह में ग़ैरत घर घर घूम रही है
जब दिया नहीं वक़्त मगर अब टट्टे चूम रही है
नहीं आज की बात तुम तारीख़ उठा कर देखो
झूठे वादों की राजनीति में सदा ही धूम रही है।

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