चुनावी चटकारा … वरिष्ठ कवि जीके पिपिल
जीके पिपिल
देहरादून।
——————————————————————————————————————————————
1-
कहीं तिरछा तो कहीं सपाट बहाव में है
क्या चुनावी दरिया किसी बदलाव में है
कही तबाही तो कहीं हरियाली आयेगी
परिवर्तन अब मतदाता के स्वभाव में है।
2-
इलाके में भूले भटके मुसाफ़िर आ गये
उम्मीदवार पब्लिक की ख़ातिर आ गये
ऐसे लोग आते हैं हर पाँच साल के बाद
इस दफ़ा भी आना था सो फ़िर आ गये।
3-
मैदान में आ खड़े हैं वो चुनाव के लिये
अपने और समाज के बदलाव के लिये
होती है राजनीति तो देश सेवा के लिये
है उन्हें नमन उनके इस लगाव के लिये।