Sat. Nov 23rd, 2024

चुनावी चटकारा … वरिष्ठ कवि जीके पिपिल

जीके पिपिल
देहरादून।

——————————————————————————————————————————————

1-

कहीं तिरछा तो कहीं सपाट बहाव में है
क्या चुनावी दरिया किसी बदलाव में है
कही तबाही तो कहीं हरियाली आयेगी
परिवर्तन अब मतदाता के स्वभाव में है।

2-

इलाके में भूले भटके मुसाफ़िर आ गये
उम्मीदवार पब्लिक की ख़ातिर आ गये
ऐसे लोग आते हैं हर पाँच साल के बाद
इस दफ़ा भी आना था सो फ़िर आ गये।

3-

मैदान में आ खड़े हैं वो चुनाव के लिये
अपने और समाज के बदलाव के लिये
होती है राजनीति तो देश सेवा के लिये
है उन्हें नमन उनके इस लगाव के लिये।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *