चुनावी चटकारा … वरिष्ठ कवि जीके पिपिल
जीके पिपिल
देहरादून।
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1-
फ़िरक़ा परस्ती नफ़रत पर चोट करो
अपने घरों से निकलो और वोट करो
आज का वोट ही कल काम आयेगा
चाहे किसी को रिजेक्ट या सपोर्ट करो
2-
चुनाव में भले ही नुक़सान भारी हो जाये
छोटी सी कोई बीमारी महामारी हो जाये
मेरी नहीं मेरे विपक्ष की ज़मानत न बचे
वोटरों को अपना फ़रमान जारी हो जाये