Mon. Nov 25th, 2024

चुनावी चटकारा … वरिष्ठ कवि जीके पिपिल

जीके पिपिल
देहरादून।

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कहीं कीचड़ उछल रही है कहीं गड़े मुर्दे उखड़ रहे हैं
कहीं गठबंधन बन गए कहीं पुराने रिश्ते बिगड़ रहे हैं
क्या मालूम किस करवट बैठेगा ऊँट अब दस मार्च को
सुना है कि कुर्सी हथियाने को नए हाथ पकड़ रहे हैं।।

 

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