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दीपावली… त्यौहारों का असली महत्व समझें और समझाएं हम..

डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर, देहरादून
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दीपावली…
परहित सरिस धर्म नहीं भाई
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दीप से दीप जलाकर दिवाली का हर साल मनाया है मैंने
यूं लगता बरसों से खुशियों का संसार सजाया है मैंने

आत्म केंद्रित होकर मैंने हर त्यौहार मनाए हैं
होली दीपावली धनतेरस और सारे पर्व मनाए हैं

पैसा हमें कहां खर्च ना इसमे वक्त गवाँते हम
बाजारों की हर दुकान से वैभव खरीद के लाते हम

यूँ लग रहा मानो मैंने समय बहुत व्यतीत किया
आसपास जो देखूँ, समाज का उपेक्षित एक वर्ग दिखा

जो ना जाने, कैसी होती खुशियां, कैसे रोटी पाए वो
जिनको भरपेट भोजन भी मिल जाए, तो त्यौहार कहो

त्योहारों की सारी पूंजी अब मैं, यूं ना व्यर्थ गँवाऊंगी
इस दिवाली आश्रित आश्रम में जाकर सामान बांट कर आऊंगी

ऐसा प्रण मैंने, ना केवल, खुद में खुद के साथ किया
परिवार के हर सदस्य को भविष्य के लिए तैयार किया

घर बैठकर संगी साथियों के संग दीपावली मनाने में आनंद नहीं
उदास चेहरों पर संतुष्ट मुस्कान देखकर ऐसे पायें खुशियां नईं

आप सभी से मिलकर मैं एक गुजारिश करती हूं
अपना घर तो सभी सजाते, चलो मिलकर कुछ कदम इस और बढ़ायें

देश दुनिया के हर चेहरे पर मुस्कान अगर ला पाए हम
त्यौहारों का असली महत्व समझें और समझाएं हम

नया नहीं ला सकते हो तो, चलो पुराना कुछ दे आओ
अपनी सामर्थ्य अनुसार, खुशियां देकर त्यौहार मनाओ

त्यौहार का असली अर्थ तो हर चेहरे पर मुस्कान सजाना होता है
दीपमाला के पावन पर्व पर, कुछ चिराग औरों के लिए जलाते हैं।

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