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लोकभाषा से विमुख हो रही युवा पीढ़ी, संरक्षण को प्रयास जरूरी: नेगी

-धाद की ओर से अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस पर आयोजित किया गया कार्यक्रम, गढ़वाली और कुमाऊंनी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की वकालत

देहरादून (Dehradun): युवा पीढ़ी लोकभाषा से विमुख होती जा रही है। यह चिंंता का विषय है और  ऐसे में लोकभाषा के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने जरूरी हो गए हैं। गढ़रत्न लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी (folk singer Narendra Singh negi) ने यह बात अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में कही। नेगी ने कहा कि हालांकि अब मातृभाषा के प्रति लोग जागरूक हो रहे हैं, बावजूद इसके प्रचार-प्रसार की जरूरत है। उन्होंने गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की वकालत की। कार्यक्रम में लोकभाषाओं पर आधारित पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।
धाद लोकभाषा एकांश ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा भाषा दिवस पर रविवार को मालदेवता स्थित स्मृति वन में आयोजित किया। नेगी ने सेंसेक्स में गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी भाषाओं पर आए संकट का जिक्र करते हुए, इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यदि हमने मातृभाषा के कालम में गढ़वाली या कुमाऊंनी लिखा होता तो यह आंकड़े झूटे साबित होते, क्योंकि लाखों लोग इन भाषाओं को बोलते हैं। जब से उन्होंने गढ़वाली गीत गाने शुरू किए तो लोकभाषा ने उन्हें ऐसा जकड़ा कि वह आज तक उससे छूट नहीं पाए। उन्होंने धाद के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि सरकारों से लोकभाषा को बचाने की उम्मीद नहीं की जा सकती, इसलिए गढ़वाली भाषा को जिंदा रखने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है।

अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही भाषाएं

धाद के केंद्रीय अध्यक्ष लोकेश नवानी ने कहा कि दुनिया में साढ़े तीन हजार से ज्यादा भाषाएं हैं, जिनमें से कई भाषाएं अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं। उन्होंने कहा कि लोकभाषा हमको आपस में जोड़ने का काम करती है। भूमंडलीकरण के कारण अंग्रेजी भाषा हावी हो गई, जिससे गढ़वाली समेत तमाम भाषाओं पर संकट आ गया, जिसे संरक्षण देने की जरूरत है। भाषाई विविधता के बीच अपनी भाषा को बचाने की जरूरत है।

ज्यादा भाषाएं सीखना बुरा नहीं, लोकभाषा बचाना जरूरी

नंदकिशोर हटवाल ने बाल साहित्य में लोकभाषा के प्रयोग पर जोर दिया। डायट प्राचार्य राकेश जुगरान ने कहा कि एक से ज्यादा भाषा सीखना बुरा नहीं है। लेकिन, अपनी लोकभाषा को बचाना जरूरी है, जिसके लिए निरंतर काम किया जाना जरूरी है। इसे स्कूल स्तर पर शुरू करने की जरूरत है।

काव्य में बिखरे लोकभाषा के रंग

कार्यक्रम में पुष्पलता रावत, मुकेश नौटियाल, प्रदीप बहुगुणा दर्पण ने भी विचार व्यक्त किए। दो सत्रों में हुए कार्यक्रम के दूसरे चरण में गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी और अन्य लोक भाषाओं में कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। पहले सत्र का संचालन संस्था के केंद्रीय महासचिव तन्मय ममगाईं और दूसरे सत्र का संचालन शांति बैंजोला ने किया। कार्यक्रम में डॉ कमला पंत, डॉ आशा रावत, हर्ष मणि ब्यास, डॉ राकेश बलूनी, मणि भारती, धूम सिंह, गोपाल बिष्ट, शोभा रतूड़ी आदि मौजूद थे।

लोकभाषा की पन्द्रह पुस्तकों का हुआ लोकार्पण

अंतरराष्ट्रीय लोकभाषा दिवस पर आयोजित नौ दिवसीय कार्यक्रम के प्रभारी शांति प्रकाश जिज्ञासु ने बताया कि कार्यक्रम के अंतिम दिन रूम टू रीड के तहत चार भाषाओं गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी और हिंदी में 15-15 कहानियों के सेट की पुस्तक का लोकार्पण किया गया। इन पुस्तकों के लेखकों ने अपने विचार भी साझा किए।

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