युवा कवि धर्मेन्द्र उनियाल ‘धर्मी’ की गढ़वाली कविता… जितारू बणी गी गौं कू प्रधान
धर्मेन्द्र उनियाल ‘धर्मी’
अल्मोड़ा, उत्तराखंड
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प्रधान जी
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जितारू बणी गी गौं कू प्रधान
तबरी बटी छ त्यू रोज परेशान
जौन वोट दिन तौंकी भी सुणा
जौन नी दिनी त्यु भी बच्याण!!
जितारू बणी गी गौं कू प्रधान!!
कूई मनरेगा मा काम मागणू
कूई सुदि मुदि आराम मागणू ,
कै की पेंशन, कैकू एडमिशन,
कैकी आरटीआई करनी परेशान!!
जितारू बणी गी गौं कू प्रधान!!
कुई बोना छप्पर की टीन खयाली
कुई बोना हमारी लैट्रिन खयाली!!
लोग लगाणा जितारू पर इल्जाम,
सूणी सूणी जितारू ह्वैगी कलेकान!!
जितारू बणी गी गौं कू प्रधान!!
दारू पी तैं लोग खूब लडयोणा
पंचैतू करन तै प्रधान मा औणा,
पटवारी चौकी मा मच्यू घमसान
पटवारी भी पुछणू कू छ प्रधान!!
जितारू बणी गी गौं कू प्रधान!!
सबु की समस्या प्रधान का मुण्ड,
लोगू का दल अर लोगू का झूण्ड,
प्रधान जी की ऐगी यनी घित-घित
घर मा लग्यूं तौंका रोज मण्डाण!!
जितारू बणी गी गौं कू प्रधान!!
पाँच साल जन तन काटी याली
जितारू न बोई देव हरियाली
कैकी राजनिति अब कैकू प्रधान
जितारू बोनू अपडी बई खान!!
अब छूटी गै जितारू की जान
अब नी रै जितारू गौं कू प्रधान!!