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युवा शाइर धर्मेन्द्र उनियाल ‘धर्मी’ की गढ़वाली रचना.. बद्री रूठी ह्वला मेरा, या केदार रूठी होला

धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’
देहरादून, उत्तराखंड
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बद्री रूठी ह्वला मेरा, या केदार रूठी होला,
चीड़ बुरांश लंईया पईयां देवदार रूठी होला।

कभी ओणी यख आपदा, कभी कुई बीमारी,
रोजगार की समस्या, पलायन भी छ भारी,
सत्ता लेणी मजा यख, हड पलटी पलटी,
नेताओं का ठाट बाट अर जनता तैं बेरोजगारी।

बल सत्ता रूठी ह्वली या रोजगार रूठी होला।
बद्री रूठी ह्वला मेरा या केदार रूठी होला।

ईष्ट पितर भैरू मेरा, हे गंगा जमुना प्यारी,
भूमि का भू्म्याल मेरा, हे नृसिंह परचाधारी।
किलै उजड्यन पितृ कुड़ी, यू हर्यां भार्या वोण,
किलै सूख्यन डाला बूडदा, पाणी की पणधारी।

माया रूठी ह्वली, या कूई मायादार रूठी ह्वला,
बद्री रूठी ह्वला मेरा या केदार रूठी होला।

सबूकी करी रक्षा माता, है राज राजेश्वरी,
धारी देवी माता मेरी, सुरकन्डा कुन्जापुरी।
देव भूमि की लाज रख्यां, हे सेम नागराज।
त्रिजुगीनारायण मेरा, हे माता भुवनेश्वरी।

बाडूली रूठी ह्वली, या यू रैबार रूठी ह्वला,
बद्री रूठी ह्वला मेरा या केदार रूठी होला।।

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