राज्य स्थापना दिवस पर विशेष: धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’ की गढ़वाली रचना… स्वर्ग छ बल स्वर्ग छ, उत्तराखंड मा स्वर्ग छ
धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’
अल्मोड़ा, उत्तराखंड
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स्वर्ग छ बल स्वर्ग छ, उत्तराखंड मा स्वर्ग छ,
गर्व छ बल गर्व छ, हम तैं ये पर गर्व छ ।
सूरज नारायण आरती करदा, बद्री का धाम की,
केदार की संध्या करदी , किरणी बल, घाम की ,
मोक्षदायिनी गंगा जमुना, यखी बटी न, बगदी छन
स्वर्ग की, स्वर्ग सीढ़ी, यखी बटी न लगदी छन।
धर्म छ बल धर्म छ , ईं धरती मा धर्म छ।
गर्व छ बल गर्व छ, हम तैं ये पर गर्व छ।
देवतों की ब्यौ की वेदी, त्रिजुगीनारैणी यख,
क्षेत्रपाल भैरू दगड , देवी बारह बैणी यख ।
राज रजवाड़ों की देवी ,यख राज राजेश्वरी मां,
यख जल्म लेण तैं बल , देवता बोदा हां हां।
मर्म छ बल मर्म छ , ईं बात मा मर्म छ।
गर्व छ बल गर्व छ, हम तैं ये पर गर्व छ।
मोरी मा नारैण यख, खोली मा गणेश छन
ब्यौ की रीत रसाण बची अभी यख शेष छन,
आदिबद्री, तुंगनाथ फूलू की यख घाटी छ,
मां न बोळी स्वर्ग छ यू, पवित्र यख की माटी छ।
शर्त छ बल शर्त छ , ईं बात की शर्त छ।
गर्व छ बल गर्व छ, हम तैं ये पर गर्व छ।
देवताओं की डोली दगड जागर की रसाण छ ,
ढोल सागर की विदया अर रसीलू मण्डाण छ।
हरयां भर्यां यख बुग्याल, बांज बुरांश रिंगाल छन
हिमालय की ऊंची चोटी , ढकी सैडा साल छन।
बर्फ छ बल बर्फ छ, हिंवाली डांडियों बर्फ छ।
गर्व छ बल गर्व छ, हम तैं ये पर गर्व छ।