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राज्य स्थापना दिवस पर विशेष: धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’… हमको चाहिए अब खौलता हुआ उत्तराखंड

धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’
अल्मोड़ा, उत्तराखंड

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हमको चाहिए अब खौलता हुआ उत्तराखंड।

न्याय-अन्याय को तौलता हुआ उत्तराखंड,
रोकर -सिसककर- बोलता हुआ उत्तराखंड,
बीस वर्षों से सुलग रहा है धीमी आंच में,
हमको चाहिए अब खौलता हुआ उत्तराखंड।

जो कुछ नही थे वो सरदार हो गये इसके,
जीतकर लाने वाले गुनहगार हो गये इसके,
नेता अपने पीछे बांधकर घसीट रहे हैं इसे,
सबको चुभ रहा है दौड़ता हुआ उत्तराखंड।

हमको चाहिए अब खौलता हुआ उत्तराखंड।

ख़नन की रेत-बज़री पर बुनियाद इसकी,
शराब के कारोबार में हो रही बात इसकी,
चारों धाम के चरणों में होकर के शरणागत
बस अपनी विपदा बोलता हुआ उत्तराखंड।

हमको चाहिए अब खौलता हुआ उत्तराखंड।

तेरह जनपद के प्रदेश की हैं दो राजधानियां,
दर्ज नहीं कहीं आन्दोलनकारियों की कहानियां
राजनीति की बलि चढ़ गया छोटी ही उम्र में ही,
अपने संस्कारों से मुख मोड़ता हुआ उत्तराखंड।

हमको चाहिए अब खौलता हुआ उत्तराखंड ।

बहुत बेहतरीन था इसकी साक्षरता का प्रतिशत,
मगर नई पीढ़ी को लग चुकी है अब नशे की लत,
हर गांव खुशहाल था पर पलायन खा गया उनको,
बस रह गया अपनी जड़ें खोजता हुआ उत्तराखंड!

हमको चाहिए अब खौलता हुआ उत्तराखंड।

अब भी वक्त है हमें सम्भलना होगा साथियों,
साथ मिलकर के साथ चलना होगा साथियों,
बांज- बुरांश- सेब-देवदार से हरा -भरा कर दें,
और देखें अपनी आँखों से मौलता हुआ उत्तराखंड

मौलता=मौलना, भरना, जैसे घाव भरना ।
(गढ़वाली शब्द)

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