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संस्मरण… कहां से.. कैसे आते हैं विचार… कैसे होता है लेखन

धर्मेन्द्र उनियाल धर्मी
अल्मोड़ा, उत्तराखंड
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एक बहुत अज़ीज़ मित्र ने कहा आप लिखते हो.. और बहुत अच्छा लिखते हो.. लेकिन, ये बताओ ये शे’र ये ग़ज़ल तुम्हारे जहन मे आती कहाँ से हैं?? (अपनी तारीफ नही कर रहा हूँ.. जो उसने कहा वही बता रहा हूँ)

सबसे पहले तो मैनें मित्र को शुक्रिया कहा.. फिर कहा जो मेरे चारों तरफ घटित हो रहा है, वहीं तो शायरी है, वहीं कविता, ग़ज़ल, रचना सब वहीं से लाता हूं…

एक वाकया सुनता हूं.. कैसे आता है जहन में ये सब

मेरे एक मित्र की माँ को कैंसर था वो हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट (भानियावाला) में बहुत गम्भीर स्थिति मे भर्ती थी। मैं और मित्र बैंक से रुपए निकाल कर और अन्य भी दो चार जरूरी काम निपटाकर तीन बजे उसकी माता जी को देखने पंहुचे.. उसके पिता जी का चार वर्ष पूर्व सड़क दुर्घटना मे स्वर्गवास हो चुका था। बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी, वो अपने ससुराल उत्तरकाशी मे थी। खैर.. अपने बेटे को सामने पाकर माँ के मन के प्रसन्नता के भाव चेहरे पर स्पष्ट दृष्टिगत हो रहे थे। हांलाकि, उनके पेट मे तीव्र दर्द हो रहा था। लेकिन, माँ बेटे के वात्सल्यपूर्ण मिलन में वह दर्द बौना साबित हो रहा था…

बेटे ने माँ का हाल पूछा तो माँ ने कहा तू चिंता मत कर मैं दवाई से ठीक हो जाऊंगी!!
पहले ये बता तूने सुबह से कुछ खाया भी या नही?
मित्र ने माँ का मन रखने के लिये सिर नीचे झुका कर झूठ ही बोल दिया हाँ मैंने खा लिया माँ!
लेकिन, माँ से झूठ बोल पाना उतना ही असम्भव है, जितना हथेली पर दही जमाना!
माँ ने तपाक से कहा-खा मेरी कसम!!
अब दोस्त फफक कर रो पड़ा और रोते-रोते बोला-माँ पहले तू ठीक हो जा मैं फिर कुछ खा लूंगा!!

माँ बेटे के इस करुण प्रेम को देखकर मेरे नेत्र भी सजल हो उठे। थोड़ी देर में जब मन हल्का हो गया, तो माँ ने कहा. मैंने कहा न मैं जल्द ही दवाईयों से ठीक हो जाऊंगी, जा पहले तू कुछ खा कर आ.. तुझे मेरी कसम.. और बिना खाये मत आना वरना कसम टूट जायेगी और मैं मर जाऊंगी!

माँ की दी हुई कसम के आगे तो भगवान राम और कृष्ण भी नतमस्तक हुऐ फिर दोस्त और मेरी क्या बिसात। क्योंकि, माँ तो माँ होती है चाहे मित्र की ही क्यों न हो और माँ से बड़ा और सशक्त रिश्ता मेरी समझ में तो कोई दूसरा है नही?

दोस्त और मैं बाहर निकल कर कैंटीन तक आये। खामोशी से और भारी मन लिये बिस्किट और चाय का आर्डर दिया। दो-दो बिस्किट और चाय पीकर हम वापस वार्ड मे पंहुचे ही थे कि.. अनहोनी घटित हो गई.. दोस्त माँ के सिरहाने की ओर और मैं माँ के पैरों की ओर बैठे ही थे, कि माँ ने देखते ही देखते बेटे की गोद मे सिर रख कर अंतिम साँस ली…।

जितने भाग्यशाली होते हैं वो बेटे जिनकी किस्मत मे माँ का सेवा भाव लिखा होता है और उतने ही अभागे भी होते कि वह अपनी आँखों के सामने अपने सृजनकर्ता को अपने पालनकर्ता को अपने पहले गुरु, अपने पहले सखा, अपनी सबसे अनमोल धरोहर अपनी माँ को मरते देखते हैं!!

जिस कसम को रखने के लिये हमने बेमन से मुँह जूठा किया था न जाने वो कसम कैसे टूट गई? दोस्त की माँ जो अभी तक दवाईयों से ठीक होने की बात कह रही थी इस दुनिया मे नहीं रही…. दोस्त को सम्भाल कर बाहर लाया.. जितनी मदद हो सकती थी इधर-उधर फोन कर वह की…!!

उस वक्त की घटना को याद करके मन से दो पंक्तियां निकली … आप चाहे तो इसे शे’र कह सकते हो.. लेकिन, वो लम्हा मैनें कैसे जिया… मैं बयां नही कर सकता…

मैं ठीक हो जाऊंगी दवाई से बोलती है,
माँ झूठ भी कितनी सफ़ाई से बोलती है!!

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