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युवा कवि धर्मेन्द्र उनियाल ‘धर्मी’ की एक गढ़वाली रचना… गौऊं की घर-कुडी छौडिक

धर्मेन्द्र उनियाल ‘धर्मी’
अल्मोड़ा, उत्तराखंड


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गौऊं की घर-कुडी छौडिक,
चली गैन नौना ब्वारी लडिक।
सू-खी गैन आम का डाळा,
तोण- भीमल और खडीक।

गौऊं की घर -कुडी छौडिक,
चली गैन नौना ब्वारी लडिक।

चौक गौठ्यारी सूनी पड़ी गैन,
छज्जों की बल पठाल रडी गैन,
साग सगवाडि घास जम्यूं छा,
द्वार ऐंगीन भूआं उजडीक।

गौऊं की घर -कुडी छौडिक,
चली गैन नौना ब्वारी लडिक।

खादरा अलमारी जाला लंग्या छन
सड्यां कोठरू पर ताला लंग्या छन
डिंडयाली तैबारी मूसों की घोल,
भूआं पड़ी गैन त्यु गळी गळी क।

गौऊं की घर -कुडी छौडिक
चली गैन नौना ब्वारी लडिक।

कूडी -कूडी मा बांदर नाचणा,
डोखरा पुगडा सुंगर भागणा।
कख गई दईं अर बाजण्या रोपण।
वोढू जगवालदा था डालों चडिक।

गौऊं की घर -कुडी छौडिक,
चली गैन नौना ब्वारी लडिक।

गौं सभी खंदवार बणी गैन,
देवतों का भी आंखा तणी गैन
संजैती जात्रा हो या पितृ कारज
लोग भेजणा बस रूपया गणिक।

गौऊं की घर -कुडी छौडिक,
चली गैन नौना ब्वारी लडिक।

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