ढलती जीवन सांझ, बात कुछ तुम्हें बतानी है….
डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर, देहरादून
——————————————
बात कुछ तुम्हें बतानी है……!
———————————————-
ढलती जीवन सांझ,
बात कुछ तुम्हें बतानी है।
थके हुए मेरे गीतों के
घुंघरू बजते हैं
हाथों की रेखा को बीते
पल वो डंसते हैं।
यही टीस तो अब जीवनभर
मुझे सताती है।
तुम्हें भूल न सकी सजा
है मेरे जीवन की
यादें ही तो हैं दौलत हैं अब
बीते यौवन की।
साथ जियेंगे साथ मंरेगे
कहानी बड़ी पुरानी है।
अब भी ख्वाबों में आकर
क्यों नींद उड़ाते हो
बाहों में भर कर क्यों इतना
प्यार दिखाते हो
चाहत में बीती दोनों की
भूली सी जवानी है।
मेरी पलकों में मोती हैं
तेरी यादों के
अब भी आवाजें देते हैं
मौसम वादों के।
आंसू नहीं आंख में ये तो
गंगा का पानी है।
ढलती जीवन सांझ
बात कुछ तुम्हें बतानी है।