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सामंतवाद से लड़ने का प्रयास करती डॉ अजय सेमल्टी की रचना… वो कहता है

डॉ अजय सेमल्टी
गढ़वाल विवि, श्रीनगर गढ़वाल

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वो कहता है

वो कहता है कि, तू शान ए दरबार मेरा है,
तेरी हर जीत मेरी है, मेेरी हर हार तेरी है।

तू लाया तोड़ तारे, या खुदा! मेरा ही जलवा है,
घिसी एड़ी हैं तेरी तो, वो तेरा मुकद्दर है।

वो ऊंचा उठ गया इतना, कि सुनता भी ऊंचा है,
उठे आवाज ऊंची जो, गले वो रेत देता है।

वो कहता है पैगंबर हूँ, कुर्बानी तुमको देनी है
तू भूखा है तू कुचला है, तेरी सांसें बेमानी है।

तख्तों ताज जो दाँव पर, कुर्बानी प्यादों को देनी है,
जिया जितना भी तू अब तक, तुझे कीमत चुकानी है।

गिरा प्यादा बेफिक्रा वो, है मजीद नादानी,
शह-ए-मात का आगाज़, प्यादे की कुर्बानी।

वो कहता है कि, तू…

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