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डॉ अजय सेमल्टी की एक व्यंग्य रचना… दुनिया है बस लोटों की

डॉ अजय सेमल्टी
गढ़वाल विश्वविद्यालय
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लोटे
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दुनिया है बस लोटों की
बिन पेंदी के लोटों की
चमचों की ना थालियों की
दुनिया है बस लोटों की।

कुर्सी पर धृतराष्ट्र हैं बैठे,
पर राज किया है चमचों ने,
मौसम बदले या ना बदले,
ठाठ किया है लोटों ने।

चमचे खोजें अवसर गिरने के,
लोटे गजब हैं सीमा गिरने के,
जो करतब देखे लोटों के,
हैं होश ठिकाने चमचों के।

थाली तो बेचारी गिरी हुई है,
जमीन से जैसे चिपकी हुई है,
चमचों की तबियत खिली हुई है,
तो लोटों ने किस्मत पाली हुए है।

मैं इक अभागा जो चमचा ना लोटा,
ना बाप है मंत्री ना चाचा संतरी,
ख़ुदा ही जाने क्यों मेरे एब बड़े हैं,
औकात है अदनी पर इरादे बड़े हैं…

जबकि

दुनिया है बस लोटों की
बिन पेंदी के लोटों की
चमचों की ना थालियों की
दुनिया है बस लोटों की।

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