डॉ अजय सेमल्टी की बहुत कुछ समझाती दो कविताएं…. शंकर माथा पकड़े बैठे.. भागीरथ भी प्यासा है
डॉ अजय सेमल्टी
गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर गढ़वाल
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भागीरथ भी प्यासा है……..
शंकर माथा पकड़े बैठे भागीरथ भी प्यासा है
गंगा बहना भूल गयी अलकनंदा तालाब भई …..
याद आती वो बूढ़ी नानी,
जो आँखों में झील लिये,
ताक रही डूबी टिहरी को,
मानो जीवन-सिंगोरी हवन हुई….
शंकर माथा पकड़े बैठे, भागीरथ भी प्यासा है
गंगा बहना भूल गयी, अलकनंदा तालाब भई …..
हम छोड़ें अपनी जड़ों को
हमको वो दून बसायेंगे
अरे! हमसे छीनो ह्रदय स्पंदन
फिर ये उजाला लायेंगे ……..
शंकर माथा पकड़े बैठे, भागीरथ भी प्यासा है
गंगा बहना भूल गयी, अलकनंदा तालाब भई …..
देवप्रयाग में गंगा का रूप रंग ही बदला है,
श्रीनगरी में महादेव को दूषित जल अभिषेक मिला,
जनता और जनार्दन भी दूषित जल ही पीती है,
राष्ट्रपिता के भक्तों से ही ये दुनिया ही चलती है,
तभी तो…………..
शंकर माथा पकड़े बैठे, भागीरथ भी प्यासा है
गंगा बहना भूल गयी, अलकनंदा तालाब भई …..
धारी को हिला के देख चुके,
शंकर का ताण्डव देख लिया,
अब भी संभलो वक्ता मिला है….
इन वन नदियों को छोड़ दो……….
शंकर माथा पकड़े बैठे, भागीरथ भी प्यासा है
गंगा बहना भूल गयी, अलकनंदा तालाब भई …..
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गलती….
समय का पहिया घूमते देखा है हमने
कुदरत को अंगड़ाइयां लेते देखा है हमने।
ए आदम जात! अब बस, घरों से न निकलना,
सरे बाज़ार आज शेरों को टहलते देखा है हमने।
जर्रा हैं हम तुम, तेरी मेरी नहीं ये ज़मीं सब की है,
वक्त ने लिख दी है इबारत, ये गलती हम सब की है।
गौर से देख लेना फ़िर याद रखना ये मंज़र ‘अजय’,
ज़रा सहम के बयां करना, ये गलती हम सब की है।
