डॉ अलका अरोड़ा का एक गीत.. तुम सा बेवफा जमाने में नहीं
डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर, देहरादून
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विधा – गीत
तुमसा बेवफा जमाने में नहीं
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जब भी छेड़ा किस्सा वो पुराना, प्रेम से
मैं महीनों सो ना पाई चैन से
दिल मेरा बेचैन था उस अनजानी सी टीस से
मैं महीनों सो ना पाई चैन से।
तुम तो मुड़ कर खो गए अपनी दुनियाँ में कहीं
तेरी आहट से धड़कता दिल रहा
मैं वहीं से टूट कर रुसवा हुई
मैं महीनों चैन से सो ना सकी।
तेरे हाथों में मेरी रेखा नहीं
मैं तेरी चाहत का दम भरती रही
तुझको मेरा होश पल भर भी नहीं
मैं महीनों चैन से सो ना सकी।
एक जरा सी बात पर होकर ख़फा
तू मुझे मझधार ही धोखा दिया
तेरी राहो में मैं यूँ निसार हुई
मैं महीनों चैन से सो ना सकी।
एक बार कभी आना मेरी दुनियाँ में
मैं वहीं बुत बन कर खड़ी
मेरी पलकों से चुराई नींदे सभी
मैं महीनो चैन से सो ना सकी।
बात वफा की चल गई गर कहीं
तेरा हर्फे नाम ना होगा कहीं
बेवफा तुझ सी कभी हो ना सकी
मैं महीनों चैन से सो ना सकी।।
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सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित…..22/12/2020
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