डॉ अलका अरोड़ा की एक रचना … मेरी जिंदगी से पूछा मैंने एक रोज
डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर, देहरादून
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जिंदगी
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मेरी जिंदगी से पूछा मैंने एक रोज
जीने का वह तरीका
जो घुटन पीड़ा और दर्द से हो बिल्कुल अछूता
जिंदगी के पास नहीं था कोई जवाब
मुस्कुराकर वह बोली बताती हूं तुझे सलीका
बहुत जिया अपने लिए जीवन
जी कर देखो जीवन पराया
दो कदम बढ़ाओ तुम किसी निर्बल की ओर
जीने का तरीका खुद-ब-खुद चलकर आ जाएगा आपकी ओर
सुनकर हमारी गुफ्तगू वक्त भी मुस्कुराया
ऐ जिंदगी तूने भी तरीका खूब बताया
जीवन तभी सार्थक है गर बंधाओ किसी को आस
वर्ना जो कुछ जोड़ा जीवन में वह भी न रहेगा पास।