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डॉ अलका अरोड़ा की एक रचना.. पहली बारिश की यादें सहेज रही हूं

डॉ अलका अरोड़ा
देहरादून, उत्तराखंड
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पहली बारिश
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बचपन की यादों को समेट रही हूं
पहली बारिश की यादें सहेज रही हूं
बारिश का पानी
सखी सहेली
कागज की नाव
छपाक सी मस्ती
बेफिक्र ज़माना
वक्त सुहाना
हौले-हौले से
सपने भीग जाना
पिता की मुस्कान
मां को चिंता
पहली बारिश का
अहसास अनोखा
न आएगा दोबारा
वो बचपन मस्ताना।

उम्र की दहलीज पर बढ़ चले क़दम
पहली बारिश जवानी का मौसम
वो परिंदे सा दिल
वो मन को भिगोना
वो ठंडी सी आहें
नाजुक सी छुअन
वो होठों पे बूंदे
ऊंची उड़ानें
मीठे से सपने
चांद तारों के फसाने
बरसात की बातें
मुहब्ब्त की रातें
भीगे से वादे
पक्के इरादे
चला ही गया वो भी वक्त बेगाना
पहली सी बारिश का अहसास अंजाना।

वक्त ने अपनी फिर बढ़ाई है चाल
उम्र की गहरी प्रोढावस्था का ठहराव
वो सुदृढ़ निर्णय
वो थमा सा धैर्य
बारिश की बूंदों पे
रुकी हुई निगाहें
चलती सी दुनियां
बढ़ते से क़दम
हाथों में कामयाबी की
पकड़े लगाम
ढलती हुई सांझ के पक्के इरादे
नव पीढ़ी को स्वप्न बांटते हाथ अपने
बारिश वही है और है बूंदे वही
मगर मन के कोने पर असर है जुदा
जीवन के हर हिस्से पर पहली बारिश का
रंग चढ़ता है हम पर जैसे खुश हो खुदा।।

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