डॉ अलका अरोड़ा की एक रचना… जहाँ सिर श्रृद्धा से झुक जाते है
डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर, देहरादून
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जहाँ सिर श्रृद्धा से झुक जाते है
अपने शिक्षक सभी याद आते हैं
माँ मेरी प्रथम शिक्षिका है
मेरी जीवन की वही रचियता है
पिता से धैर्य सीखा और सीखी स्थिरता
चुपचाप जिम्मेदारी वहन करना और मधुरता
दादी दादा नानी नाना से सीखा मिलजुल रहना
प्यार बांटना पड़ता है जीवन में हर हाल में
पाठ सिखाया मामा मौसी बुआ चाचा नें
भाई बहनों से सीखा हमने कैसे संबल पाते हैं
एक दूजे को दिल में बसाकर कैसे मुस्काते हैं
सखी सहेली गुरु बनी ये भूल नहीं सकते हम
जीवन में मस्ती के रस्ते बतलाये उन्हीं ने सब
जीवन धारा की रसधारा कैसे सरल बहाई जाये
विवाह हुआ तो जीवनसाथी ने सब सबक सिखलाये
रिश्ते नातों से जुड़कर जान पाये जीवन का सार
कार्य क्षेत्र से सीख आये हम पैसा जीवन का आधार
इन्साँ को इन्साँ बनने का श्रेय मगर देना होगा
ज्ञान सभी से पाकर भी उचित राह चुनना होगा
कौन रास्ता ठीक दिशा में हमको लेकर जायेगा
शिक्षक ही वह आध्ये है जो सही मार्ग दिखलायेगा
गुरु बिन गति नहीं जीवन में बात अटल सत्य की है
गुरु ज्ञान बिन जीवन यात्रा भी निरर्थक हो जाती है
मेरा नमन सभी गुरुओं को जिनसे जीवन आधार बने
सुगम सरल रास्ते देकर जीवन गरल से पार हुए
खुद जलकर जो करे उजाला प्रणाम मेरे गुरुवर को है
जिनकी कृपा से सुन्दर सलौना संसार बसा
पाया इज्जत मान धन वैभव सभी शिक्षकों को नमन।