डॉ अलका अरोड़ा की एक रचना … मेरे अहसास
डॉ अलका अरोडा
देहरादून, उत्तराखंड
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मेरे अहसास
एक मुद्दत से उसने मेरा हाल नहीं पूछा
कहते हैं लफ़्ज़ों की बरसात नहीं करता
एक उम्र ही गुजर गई उससे मिले बगैर
सुना है अब वो किसी से बात नहीं करता
वो एक खिड़की जो सारे शहर में चर्चा थी
कहते हैं अब परिंदा वहाँ ठिकाना नहीं करता
जो पढ़ा करता था इश्क की तमाम तहरीरें
सुना है वो किसी से मुलाकात नहीं करता
उस शख्स की जानिब चले आए थे महफिल में
कहते हैं उस का दिन और रात नहीं कटता
जो हाथ पकड़कर छोड़ा नहीं करता था कभी
सुना है उसे अकेले में अब डर नहीं लगता
मुसाफिर से हाथ मिलाकर चलता था
मोहब्बत में लिख दिया करता था गजलें सारी
जिससे लोगो नें सीखा था जिंदा रहना
सुना है वो काफिर अब सजदा नहीं करता।