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डॉ अलका अरोड़ा के कोमल भाव.. जुगनू आये नया उजाला लेकर

डॉ अलका अरोड़ा
देहरादून, उत्तराखंड
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जुगनू आये नया उजाला लेकर
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बुझते दीपक में साथ जलने आई हूं
अपनी सारी ही तमन्नाए साथ लाई हूँ
खुद को खोकर मेरा मोल लगाया तुमने
दिल के बाजार में बिकने के लिए आयी हूँ।

चोट पत्थर से नहीं फूल से खायी तुमने
इक नादान मुहब्बत में लुट गये तुम भी
इस जमाने में खायी ठोकरें हमने
महफिल ए इश्क से चले हैं रुसवा होकर।

रात आई है छत पे सितारे लेकर,
नींद आई है ख्वाब तुम्हारे लेकर,
ले के काफिला दुआओं का सभी
जुगनू आयें नया उजाला लेकर।

दिल को नया पयाम देते हैं
मुस्कराहट टों को नया नाम देते हैं
तुम तो घबराते मेरे घूँघरू से भी
तेरी आहटो को नया नाम देते हैं।

कहते हो समझते मेरी किताबों को
उड़ते परिंदे के खुले आसमानों को
भेद तुझमें औ मुझमें इतना सा
हमतो पढ़ लेते हैं खामोश निगाहों को।

ढलती महफिल के सारे हालातों को
हम तो पढ़ते हैं कोरे कागज को
दिल से जाने का कर लिया वादा
हम समझते हैं हर इशारों को।

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