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डॉ अलका अरोड़ा की एक हास्य रचना… बुढ्ढे होकर छेड़ रहे हो.. आँख दबाकर टेर रहे हो

डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर, देहरादून
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अनोखी झड़प.. हास्य रचना
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सुबह-सुबह ही पड़ोसी से
झड़प हुई अलबेली
मैं खुद को, खुद की नजर में,
खुद ही,
दुनियाँ की, सबसे खूबसूरत, महिला लगी

उसने हमें देख आँख मिचमिचाई
कुछ ही देर मे तालियाँ भी बजाई
हमने भी एक करारी धौल जमाई
पड़ोसी युवाओं की टोली बुलवाई

खूब काटा हल्ला
करी जग हंसाई
पड़ोसी के आँख मिचमिचाने
पर थोड़ा सा लजाई

बुढ्ढे होकर छेड़ रहे हो
आँख दबाकर टेर रहे हो
शर्म हया लाज बेच खाये हो
हम को ताली बजाकर बुला रहे हो

पड़ोसी युवाओं ने अपना फर्ज निभाया
खूब जमकर बुढ्ढे मजनू को धोया
इश्क का प्रेम अभी उतरा भी न था
हमें देख कुछ अजीब मुद्रा में बोला

तुझे गलतफहमी है बहना
पहली बात तो मैं कर रहा था योगासन
दूजे तू खुद अपनी सूरत पे तरस खा
तेरे जैसी पर भी कोई

आँख मार सकता है
यह संशय मन में मत ला
जिसे देख उस का खुद का ही
आदमी भाग जाता है

उस रिटायर्ड पीस पर
हमारी नजर फिसलेगी
ऐसा ख्याल भी मन में मत ला
जा बहन जा
जा बहन जा।

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