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डॉ अलका अरोड़ा की एक रचना… आओ रुक जाएं यहीं

डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर -देहरादून
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आओ रुक जायें यहीं
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आओ रुक जाए यहीं
कुछ सुकून तो मिले
रफ्ता-रफ्ता जिंदगी से
कुछ निजात मिले।

हम भी बहके से चले
राहें उल्फत में कभी
याद करते हैं तुम्हें
कहाँ भूले हैं अभी।

बात वो रुक सी गई
बात जो कह ना सकी
दिल ए आइने में अभी
एक तस्वीर है रुकी।

चाँद जब छुपने चला
साँस तब थम सी गयी
रात भर आँखे मेरी
बेवजह बहती रही।

तुम कभी मुड़ के मिलो
दर बदर करके रहम
फासले कर के निहाँ
कारवाँ तो बुनो।

हम भी हंस के तुम्हें
दामन में समेटेगें
तुम भी कुछ ऐसे ही
सवालात चुनो।

तेरे वादों की कसम
अब हमें याद नहीं
तुझको आबाद किए
हो के बरबाद सुनो।

आओ रुक जायें यहीं
कुछ सुकूँ तो मिले
रफ्ता-रफ्ता जिंदगी से
कुछ निजात मिले।

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