Sat. Nov 23rd, 2024

डॉ अलका अरोड़ा की जुबानी नारी की व्यथा की कहानी…मेरे हिस्से की धूप तब खिली न थी

डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर, देहरादून
————————————–

नारी व्यथा
———————–

मेरे हिस्से की धूप तब खिली न थी
मैं भोर बेला से व्यवस्था में उलझी थी
हर दिन सुनती एक जुमला जुरूरी सा
‘कुछ करती क्यूं नहीं तुम’ कभी सब के लिए

फुलके गर्म नरम की वेदी पर कसे जाते
शिशु देखभाल को भी वक्त दिये जाते
घर परिवार की सुख सुविधा सर्वोपरी
हाट बाजार की भी जिम्मेदारी पूरी

तंग आ गयी सुनते सौ बार यही बात
एक दिन छोड़ घर का व्यवस्थित व्यापार
पहचान अपनी पाने निकल दायरों से बाहर
खुद को साबित करने ही आ गई कमाने को

नाम, शोहरत, रुतबा, रुआब और पैसा मिला
घर आँगन से निकल आसमाँ कदमों पे गिरा
बिना मोल लिए जो पल दूसरों को दिया
दूसरा पहलू भी अब जिन्दगी का खुल रहा

वक्त नहीं अब घर गृहस्थी सम्भाली जाये
मन के कोने भी रीते हुए से झोली में पड़े
दौर सुनने का बदला है न सुनाने का ही
“घर भी देखो” ये आस सबने फिर लगा ली

ये कैसा जीवन है ये कैसी बेडियाँ हैं
जैसा चाहा सबने वैसी बन भी गयी अब
फिर भी जुमला वही पुराना साथ रहता है
“कुछ करती क्यूं नहीं तुम” कभी सब के लिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *