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कवियित्री डॉ अलका अरोड़ा की शानदार रचना, कभी यूँ ही अपने मिजाज बदला कीजिए

डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर, देहरादून
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कभी यूँ ही अपने मिजाज बदला कीजिए
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कभी यूं ही अपने मिजाज बदला कीजिये
दिल मांगे आपका तो जाँ निसार कीजिये
हंसते हंसते जिन्दगी की शाम हो जायेगी
बीती रात की सुबह का इन्तजार कीजिए

आकाश सूना दिखे तारे हो खामोश जहाँ
धीमे से मध्यम झरनों सी रागनी सुना
फूल गुलिस्ता में खिलखिलाकर जब हँसा
चुप्पियों की रुनझुन पायलियाँ सी बजा

मन का अनन्त आसमान ख्वाबों से सजा
सांझ की डोली में बैठ एक नया जहाँ बसा
जब भी आवाजे देने लगे तुझको तन्हाइयाँ
आस की गठरी थामें धीमे-धीमे तू मुस्कुरा

किसी की चाहतों में क्यूँ फंसता जाता रे मन
बेपरवाह सी डगर पे क्यूं बढ़ता अनवरत
ऐसे ही तुझसे बाँधे कुछ अहसास मीठे से
बिन डोरी के मोती गूंधे कैसे तू माला बना

बीमार से उसका हाल कभी दिल से पूछिये
सूखे गुलाबों की दास्ता किताबों में ढूंढिए
जिंदा रहने के लिए कुछ कसमें लीजिए
मुलाकात का मीठा जहर धीरे से पीजिए
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सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित…..07/01/2021
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