डॉ अलका अरोड़ा की हास्य कविता… मुझे भी सास बनने का जुनून चढ़ आया

डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर, देहरादून
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सास बनने का जुनून
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मेरे पतझड़ में फूल खिल आया
आज सुबह ही बेटे के लिए रिश्ता आया
मुझे भी सास बनने का जुनून चढ़ आया
दिल में रंग-बिरंगे फूलों का बगीचा उग आया
रिश्ते वालों की खातिर तव्वजो जम के की
बेटे की खामियाँ तारीफ में तब्दील की
उन्होंने भी बेटी के गुणों का किया बखान
समझ नहीं पाई मैं एकदम पूरा व्याख्यान
हम बेटी बहू बनाकर नहीं बेटी रूप में देंगे
मेरे समधी गर्व से मुझे बता नहीं समझा रहे थे
कपड़ों पर खर्चा करने की जरूरत न करना
जींस-टाप बेलबाटम पे रिमार्क न करना
साड़ी ओल्ड फैशन हो गयी है इसलिए
हमारी बेटी पहनेगी ये उम्मीद न करना
डायटिंग करती है भरपूर जाती है जिम
दाल रोटी बहुत खा ली अब तुम सब
मिल कर स्पाउट्स खाना और खिलाना
रसोई की चिकचिक बाहर न पहुँचाना
हमारी बेटी बहुत है मिलन सार
सहेलियों बिन उसका चलेगा नहीं संसार
हर दिन घर में मेला लगायेगी
सहेलियों को वक्त बेवक्त घर बुलायेगी
अरे आपके हाथ की बनी डिश खुद भी
खायेगी और सहेलियों को भी खिलायेगी
आपके लड़के को ऊँगली पर नचाने की
कोचिंग क्लास से ले रही है आजकल ट्रेनिंग
लड़का तुम्हारा चूँ तक न कर पायेगा
घर की व्यवस्था सुचारू रूप चलायेगा
तुम्हारी बेटी को ससुराल में जमने में मदद करेगी
ननद को कभी मायके आने के लिए न उकसायेगी
अगर बेटी तुम्हारी त्यौहारों पर भी आई
ये आपके बेटे संग फौरन मायके आ जाएगी
आखिर यह तुम्हारे घर की वेलविशर है
इसीलिए अपनी ननद की इसको फ्रिक है
ससुरजी से हो जाएगी सुपर फ्रैण्डली
ऑफिस जाने लिए उन्हीं से लिफ्ट लेगी
तुम्हारी बहुत तारीफ सुनी है
बेटे के टिफिन की इंक्वायरी करवा ली है
इसलिए बेटी की ओर से निश्चित हो जायेगें
नाश्ते का टिफिन आप ही से बनवायेगे
आपको शासन से छुटकारे की उम्र समझायेगें
तिजोरी की चाबियाँ आप के हाथों दिलवायेंगे
अरे बाप रे एसा गज़ब ना ढाना मेरे संग
सास के जूनूनें पल में दिखा दिये जीवन के रंग
टूट गयी मेरी सडनली सारी तन्द्रा
अभी बेटा 24 का है चार वर्ष और ठहरना
बहु रहेगी बहू मैं सास का किरदार बदलूंगी
घर समाज में एक बखूबी मिसाल बनूँगी
आजकल जमाना बहू को बेटी बना रहा है
खुद को सास नहीं ‘बहू की माँ हूँ’ यही बता रहा है
घर भी घर जैसा बना रहेगा फिलहाल
बेटा बहू ससुर और ननद भी होगी खुशहाल।।