डॉ अलका अरोड़ा की एक रचना… सुनो रुक भी जाओ जरा
डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर, देहरादून
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रुक भी जाओ जरा
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तुम बहुत ही ऊँची उड़ान भरते हो
मुठ्ठी में सारा आसमान करते हो
नहीं देख पाते धरा
सुनो
रुक भी जाओ जरा
हवाओं के रुख बदलते हो
तूफान को मोड़ देते हो
स्वप्न चूर-चूर हो रहा
सुनो
रुक भी जाओ जरा
खामोशी की सुनते नहीं हो
लफ्जों को बुनते नहीं हो
रिश्ता ज्यों त्यों खड़ा
सुनो
रुक भी जाओ जरा
तारे सभी कदमों तले ले आए हो
सितारे भी झोली भर लाये हो
उजाला राह तक रहा
सुनो
रुक भी जाओ जरा
हर राह पर अकेले खड़े हो
खुद को खुदी से दूर किये हो
क्यूं सबसे इतना लड़ा
सुनो
रुक भी जाओ जरा
मुहब्बत से कभी तो काम लो
कत्ल तुमने मेरा सरे आम किया
जब चाहा बदनाम किया
सुनो
रुक भी जाओ जरा
रुक भी जाओ जरा
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सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित…..24/12/2020
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