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डॉ अलका अरोड़ा की एक कविता… जी भर के मुझ को देखो

डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर, देहरादून
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मैं और मेरे श्रोता
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जी भर के मुझ को देखो
थोड़ा सा मुस्कुराओ
हम सामने तुम्हारे
पलके झुका रहे हैं

दिल में उतरने का
वादा जो कर रही हूँ
तुमसे भी लूंगी वादा
दिल में बसाये रखना

एसी बातों से न
हमको निराश करना
हम गीत जब भी गाये
संग तुम भी गुनगुनाना

आँखो से आंसुओं को
इस पल हटा के रखना
लब पे उजाले रखकर
ये कँवल यूँही खिलाना

तुम यूँ न जाने दोगे
ये भी मैं जानती हूँ
अपने शहर से मुझको
खाली न जाने दोगे

देकर दुआए तुमको
वापिस भी माँगती हूँ
जितनी पास मेरे
सब तुमको बाँटती हूँ

ऐसे ही मुझको अपनी
जिन्दगी समझना
कभी फुरसत में हमको
फिर से यहीं बुलाना

मेरा नमन है तुमको
चरणों में पुष्प सारे
खुशियां तुम्हारे सदके
नज़रों से दे रही हूं।

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