डॉ अलका अरोड़ा की एक रचना… कोमल कच्ची डोर नहीं हूं
डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर, देहरादून
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कौन हूँ मैं?
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सहमी-सहमी कमजोर नहीं हूं
भीगी-भीगी ओस नहीं हूं
आसमान पर उड़ने वाली
चंचल चितवन चकोर नहीं हूँ।
कोमल कच्ची डोर नहीं हूं
अनदेखी से उड़ने वाली
शबनम सम छोटी बूँदों जैसी
खुशबू भीनी हिलौर नहीं हूं।
कुछ जुमलों से डर जाउंगी
ऐसी भी कमजोर नहीं हूं
उड़ती चिड़िया खुले गगन की
आदि अंत से परे उडूँ मैं।
नीले अंबर से ऊपर के
सभी सितारे छूकर गिनू मैं
मुट्ठी में बंद है उड़ान हौसलों की
स्वप्नों का सत्य जहान हासिल है
अनचाहे अनसुलझी डगर का
राज अन्जाना सा मैं ही हूँ
हाँ अन्तर्मन की आवाज मैं,
कोई और नहीं, मैं ही हूँ।।