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डॉ ब्रह्मानंद तिवारी ‘अबधूत’ का एक गीत… क्यों चुराई नींद रातों की हमें समझाइये

डॉ ब्रह्मानंद तिवारी ‘अबधूत’

मैनपुरी, उत्तर प्रदेश
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क्यों चुराई नींद रातों की हमें समझाइये
बरसता सावन है आँखों से करीब आ जाइये।।

गीत गाते हैं ये झरने दिल मेरा मदहोश है
छेड़ता है पवन आँचल आसमां ख़ामोश है
तपते रेगिस्तान पर बनकर घटा छा जाइये
बरसता सावन है आँखों से करीब आ जाइये।

ढूँढ़ते हैं नैन मेरे तुमको सूनीं राह में
आ भी जाओ ओ मेरे हमदम मिलन की चाह में
चाँदनीं रातें कटेंगी किस तरह समझाइये
बरसता सावन है आँखों से करीब आ जाइये।

ये तो बेगानीं है दुनिया हम किसे  अपना कहें
प्राण हो तुम मेरे तुम बिन हम यहाँ कैसे रहें
ये मिलन की है घड़ी आ जाओ ना तड़पाइये
बरसता सावन है आँखों से करीब आ जाइये।

तुम बता दो हम किसे अपना कहें संसार में
लुट गईं खुशियाँ मेरी तुम बिन इसी परिवार में
अब तो ब्रम्हानन्द, आकर फिर न वापस जाइये।
बरसता सावन है आँखों से करीब आजाइये।।

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