राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित डॉ कुसुम रानी नैथानी की कहानी.. धमकी
डॉ के. रानी
देहरादून, उत्तराखंड
———————————————–
धमकी
——————–
पिछले एक हफ्ते से देवेश बड़ा बुझा-बुझा सा लग रहा था। उसके पिता पंडित दीन दयाल को सब सम्मान से पंडित जी कहते थे। उनसे बेटे की हालत छिपी न थी। शास्त्री का काम करते करते उन्हें लोगों की आंखों की भाषा पर अच्छी पकड़ हो गयी थी।
देवेश की घर पर किसी से ज्यादा बातचीत न होती। बचपन से ही वह परिवार के सभी सदस्यों से दूरी बनाकर रहता। मां से भी वह ज्यादा बात न करता। माया ही उसकी आंखों के इशारे को समझ झट से उसकी इच्छा पूरी कर देती।
कई दिनों से देवेश की हालत माया के लिए चिंता का विषय बनी हुई थी। उनसे न रहा गया तो उसने पूछा
”क्या बात है बेटा? मन की बात मां से भी न कहोगे।“
”कुछ नहीं मां।“
”झूठ मत बोल बेटा, मैं तेरी मां हूँ। हमेशा तेरी इच्छा का ध्यान रखा है मैने। तू कह तो सही।“
”बस ऐसे ही……।.“कहकर देवेश चुप हो गया।
”चुप रहने से समस्या खत्म नहीं हो जाती।“
”मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है। मुझे कुछ भी अच्छा नही लग रहा। सोचता हूँ अपना जीवन ही खत्म कर लू।“
”यह क्या कह रहा है तू?“ माया की आंखों के आगे देवेश की बात से अंधेरा छाने लगा।
”बस तुमने पूछा मैंने बता दिया।“
”ऐसा नहीं सोचना बेटा, हमारा क्या होगा? जीते जी मर जाएगे हम। तू चिंता न कर तुझे कोई तकलीफ है तो हम तेरा बड़े से बड़े अस्पताल में इलाज कराएगे।“
” मां मैं जीना नहीं चाहता।“
”ऐसे हिम्मत नहीं हारते बेटा।“ माया बोली पर उसका दिल अंदर से बहुत घबरा रहा था। बेटे की परेशानी माया ने शास्त्री जी को बता दी।
”अंदेशा मुझे भी था कि देवेश परेशान है पर सही बात तो उसी से पता चल सकती है।“ शास्त्री जी बोले।
”उसे डॉक्टर के पास ले चलते हैं।“ माया ने कहा और तुरन्त देवेश के पास पंहुच गयी।
”मां मुझे नहीं जाना डॉक्टर के पास। “
”बीमारी के लिए डॉक्टर तो चाहिए ही। “
”नही मां मेरा मर्ज डॉक्टर के बस का नहीं। “
”तो किसके पास है?“
”मुझे खुद नहीं मालूम। एक आदमी रोज मुझे फोन पर धमकी देता है।“
”कौन है वह?“
”मालूम होता तो बता नहीं देता।“
”तुम्हारी बातें मेरी समझ में नही आ रही है बेटा ।“
”मैं भी परेशान हूँ वह…“
”तेरी चुप्पी हमें संशय में डाल रही है।“
”मां मेरे बस में कुछ नही है।“ कहकर देवेश वहाँ से हट गया। माया की आंखो से तो नींद ही गायब हो गयी। बेटे की चिंता में मां-बाप घुले जा रहे थे। गर्म दूध की तरह न तो यह समस्या किसी से कही जा सकती थी और ना ही उसे बिसारा जा सकता था।
आखिर वही हुआ जिसका डर था, एक सुबह देवेश ने नींद की गोलियां खा ली। वह तो माया की सतर्कता ने समय रहते इसे भांप लिया और उसे तुरन्त नर्सिग होम ले गयी।
शास्त्रीजी का सिर तो शर्म से झुक गया। दुनिया को संतुष्टि का पाठ पढाने वाले के बेटे ने ही उनकी नसीहत को एक किनारे रख दिया। जो पूछता वे एक ही जवाब देते।
” ईश्वर की मर्जी के आगे किसकी चली है ?”
सुबह सवेरे एक फोन आया। फोन पर कोई लड़की देवेश के बारे मे पूछ रही थी। पंडित जी बोले
”क्या बताऊं?उसकी तबियत खराब है वह नर्सिग होम में भर्ती हैं।“
”किस नर्सिग होम में है? क्या हुआ उसे?“ उसने घबराकर पूछा।
”महिमा नर्सिग होम में।“
”मैं आ रही उससे मिलने।“ कहकर फोन कट गया। बेटे के गम में वे उसका नाम और पता तक पूछना भूल गये। इस वक्त उन्हें बेटे के अलावा कुछ नही सूझ रहा था।
देवेश को होश आ गया पर वह अभी तक पूरी तरह खतरे से बाहर नहीं था। नर्सिग होम के बाहर बैठे हुए वे ईश्वर का नाम जप रहे थे। तभी पूछताछ में बैठे युवक ने उन्हे आवाज देकर पुकारा-
”शास्त्री जी आपसे मिलने ये युवती आयी है।“
”देखे तो क्या हो गया। मेरा बेटा मौत से जूझ रहा है। जहर खाकर जाने देने की कोशिश की है उसने।“
”मैं अभी उससे मिलना चाहती हूं।“
”अभी उससे कोई भी नहीं मिल सकता है।“
”ओह…..“ कविता के चिंतित चेहरे को देखकर शास्त्री जी के माथे पर और अधिक बल पड़ गये।
”बेटी तुम कौन हो?“
कविता ने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। बस बैग से निकालकर एक एलबम शास्त्री जी को थमा दी।
”यह समय इन सब बातो के लिए नहीं है।“
”बस एक नजर इन पर डाल दीजिए।“
शास्त्री जी ने अनमने मन से एलबम को बीच से खोला। फोटो देखकर उनकी आंखे फैल गयी। उन्होने जल्दी जल्दी सारे फोटो देख डाले। कहने को कुछ शेष नही रह गया था। उन्होने चुपचाप एलबम कविता को लौटा दी।
”तुम्हारा कोई परिचित रिश्तेदार है इस शहर में।“
”नहीं।“
”कहाँ रहोगी रात भर?“
”यही कुर्सी पर बैठी रहूंगी।“
”मेरे घर चलो। देवेश से तो तुम सुबह ही मिल पाओगी।“ कविता ने कोई विरोध नहीं किया और शास्त्री जी के घर आ गयी। माया ने उसके बारे मे पूछा तो पंडितजी टाल गये।
देवेश की तबियत खराब होने की खबर मिलते ही कई लोग वहां आ जा रहे थे। हर कोई अपनी राय दे रहा था।
”भाभी तुम्हें तो पता था फोन पर कोई उसे लगातार धमकी दे रहा था। तुम्हें इसके बारे मे छानबीन करनी चाहिये थी।“ देवेश की बुआ मीना बोली।
”तुम तो जानती हो वह बचपन से कितना अन्तर्मुखी है। खुलकर कुछ बताता ही नहीं।“माया बोली।
”कही किसी लड़की का चक्कर तो नही था।“
”कैसी बात कर रही हो मीना? देवेश ऐसा लड़का नही है।“
कविता और शास्त्री जी सबकी बातें सुन रहे थे पर, वे बोले कुछ नही। रात किसी तरह कटी। सुबह माया, शास्त्री जी व कविता देवेश से मिलने गये।
वह अभी बोलने की स्थिति में नही था। उसकी आंखों से लगातार आंसू झर रहे थे। कविता को देखकर उसने नजरे दूसरी ओर फेर लीं। माया की उपस्थिति में शास्त्री जी बेटे से कुछ भी पूछना नहीं चाहते थे। माया के बाहर जाते ही शास्त्री जी ने देवेश से पूछा-
”शादी करोगे इससे?“
देवेश ने ना में सिर हिला दिया। शास्त्री जी ने कविता पर नजर डाली। वह भी मायूस खड़ी थी।
”मैं एक बार इनके मुंह से साफ शब्दों में यह सब सुनना चाहती हू।“
”मैं…..तुमसे…….शादी…….नहीं…….कंरूगा ।“ देवेश अस्फुट शब्दों मे बोला तो कविता ने किसी तरह अपने को संभाला और वहां से हटकर बाहर चली गयी। माया के आते ही शास्त्री जी भी बाहर आ गये।
”मेरा यकीन करो हमें देवेश ने तुम्हारे बारे में कभी कुछ नही बताया।“
”पर मेरे घरवाले देवेश को भली भांति जानते है।“कविता बोली।
”अब क्या चाहती हो तुम?“
”देवेश ने अपना फैसला सुना दिया। मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए उसने मौत के गले लगाना मंजूर कर लिया। अब तो कहने को कुछ भी नही बचा है।“
”शायद वह तुम्हारे लायक नहीं है। एक बुजदिल मर्द से शादी करने के बजाय जीवन भर कुंवारी रहना ज्यादा अच्छा हैं।“
”देवेश के पिता होकर आप ये सब कह रहे है?“
”पिता और मर्द एक ही सिक्के के तो दो पहलू है। हर पिता मर्द होता है। पर मर्दानगी हर कोई दिखा नही पाता। “शास्त्री जी बोले।,
”चलती हूं मैं।“
”अपने फैसले के साथ यह एलबम मुझे दे दो बेटी।“
”इसे लेकर आप क्या करेगे? मैं इसे खुद ही नष्ट कर दूंगी।“
”अच्छे संस्कारो में पली बढ़ी हो शायद।“
”नहीं बाबू जी, एक मामूली किसान की बेटी हूं। मिट्टी और फसल से नाता है हमारा।“
”तुम्हारा यह एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगा।“
”एक बुजदिल बेटे के किए की सजा मैं किसी सज्जन पिता को नहीं दे सकती। इतना बताना चाहती हूं कि मेरे यहां आने की खबर से ही देवेश घबरा गया और उसने यह गलत कदम उठा लिया।“
”वह तो कहता था कोई उसे फोन पर धमकी देता है।”
मैं ही उस पर आपसे मिलाने का जोर डाल रही थी।”
”मेरे दिल से एक बड़ा बोझ हट गया। मुझे माफ कर देना बेटी।“ कहकर शास्त्री जी ने उसके सिर पर हाथ फेरा। दो बूंद आंसू की उसके गालों पर ढुलक गयी। उसने फिर पलटकर न देखा और नर्सिग होम से बाहर निकल गयी। शास्त्री जी ने उसे दिल से ढेरो दुआए दे डाली-
”ईश्वर इसकी झोली खुशियो से भर देना। इसने आज दो परिवारों की इज्जत बचा ली।”
लेखिका का परिचय
————————————-
डॉ के. रानी
(डॉ कुसुम रानी नैथानी)
वर्ष 2020 मे प्रधानाचार्या पद से सेवानिवृत्त। शिक्षण, समाज सेवा के साथ तीन दशक से बच्चों व वयस्कों के लिए प्रेरणादायक साहित्य व कहानी लेखन में सक्रिय। अध्यात्म में विशेष रुचि। वर्ष 2015 में उत्तराखंड राज्य का सर्वोच्च शिक्षक सम्मान ‘शैलेश मटियानी शैक्षिक उत्कृष्टता पुरस्कार’ और 2016 में ‘राष्ट्रपति पुरस्कार’ से सम्मानित। कोरोना काल में जिला प्रशासन देहरादून द्वारा समाजसेवा के लिए कोरोना योद्धा सेवा सम्मान से अलंकृत। साहित्य के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित।विगत बारह वर्षों से बाल समाचार पत्र ‘बाल पक्ष’ का सफल संपादन। इनकी लिखी प्रेरणादायक कहानियां प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित। अब तक चार बाल कहानी संग्रह व एक बाल उपन्यास प्रकाशित।
पता
डॉ के. रानी
(डॉ कुसुम रानी नैथानी)
माणी गृह, 318-ए ओंकार रोड
चुक्खुवाला देहरादून (उत्तराखंड)
248 001
Mo. 9412922513