पुस्तक समीक्षा: डॉ. नंद किशोर हटवाल… जनजातियों की धरोहर से परिचित कराती लोकगंगा
डॉ नंद किशोर हटवाल
देहरादून, उत्तराखंड
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उत्तराखण्ड को यहां के पर्वत, झरने, नदियों, तीर्थ और पर्यटन स्थलों के साथ यहां की सामाजिक विविधता ने भी खूबसूरती बख्शी है। विशेषकर यहां निवास करने वाली जनजातियां इस राज्य की विशिष्ठ पहचान को स्थापित करती हैं। जनजातियों की सामाजिक सांस्कृतिक विशिष्ठता हमारे राज्य की धरोहर है। लोकगंगा का जुलाई 2021 का ‘मध्य हिमालय की जनजातियों’ पर केन्द्रित विशेषांक हमें इस धरोहर से परिचित कराने का महत्वपूर्ण प्रयास है।अंक में यहां की शौका, थारू, बुक्सा, भोटिया, जौनसारी और राजी जनजाति के बारे में आलेख हैं वहीं उत्तराखण्ड के गुर्जर, जौनपुर और रंवाई क्षेत्र के बारे में भी जानकारियां हैं।
अंक में सिर्फ मध्यहिमालय की जनजाति के बारे में ही नहीं मध्य हिमालय से बाहर पूर्वी और पश्चिमी हिमालय की जनजातियों, हिमालय के विशिष्ट समाजों और जातियों पर भी आलेख हैं। लाहौल, स्पीति, किन्नौर, लदाख, कांगड़ा, काश्मीर क्षेत्र, वहां के समाजों, हिमाचल के भेड़वाल गद्दी और पाकिस्तान स्थित हिंदूकुश पर्वत की घाटी में रहने वाली जनजाति पर केन्द्रित आलेख भी इस अंक में सम्मिलित किए गए हैं।
अंक में सम्मिलित लेखों पर एक नजर
मध्य हिमालय की जनजातियां: डॉ योगम्बर सिंह बर्त्वाल, स्पीति घाटी की कृषि संस्कृति: कलजंग छोकित, तिब्बत की ओर (संस्मरण) जय प्रकाश पंवार, सौक जनजाति (शोध पत्र) डॉ. प्रभा पंत, जनजातीय क्षेत्र लाहौल स्पीति, किन्नौर और बलिस्तान की लोक परंपरा में सृष्टि की रचना, छोरिंग दोरजे, उत्तराखण्ड की जनजाति थारू का मूल: डॉ. राज सक्सैना, लवी मेला और बुशहर रियासत: आशा शैली, नीति माणा घाटियों की जनजातियों के साथ दो वर्ष: सुशीचन्द्र डोभाल, कोशू घास की भांति नर्म सुन्दर किन्नर लोग: डॉ बुद्धिनाथ मिश्र, रवांई और जौनसार बावर का लोक साहित्य: प्रो. प्रभात उप्रेती, ‘शिंग-टकाश्में’ और किन्नर: संतराम बीए, कश्मीर का एक वाद्य यंत्र तुंबक नारी: उमा मैठाणी, गद्दी विवाह: राहुल सांकृत्यायन, राजी जनजाति का उत्थान पुनर्वास की समाधान: अशोक पंत, गमशाली गांव का लास्पा उत्सव: नंदकिशोर हटवाल, जनजातियों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले बर्तन: महावीर रंवाल्टा, उत्तराखंड की रंग्पा जनजाति: बसंती मठपाल, तराई की बुक्सा जनजाति: धर्म सिंह बसेड़ा, लद्दाख आर्थिक एवं सामाजिक परिप्रेक्ष में: विशम्बर दत्त नौटियाल, पुरातन जातियां वह जातिवाद का मूल विचार: डॉ. हेमा उनियाल, जौनपुर के आभूषण और परिधान: सुरेंद्र पुंडीर, न रही बेड़ वार्ता न रहे बेड़ा: वीरेंद्र बर्त्वाल, मिट रहा है जनजातियों का हुनर: कविता बिष्ट, कांगड़ा की लोक गाथा में नारी: चंद्र रेखा ढ़डवाल, हिमाचल के भेड़वाल गद्दी जनजाति: कल्पना बहुगुणा, ईश्वर का संसार लाहौर स्पीति: सुनीता भट्ट पैन्यूली, रंवाई महिलाओं की मजबूत सांस्कृतिक पहचान: अरण्य रंजन एवं अनीता राणा, किन्नौर और स्पीति में कुछ दिन (यात्रा वर्णन): कल्पना पंत त्रिपाठी, हिंदुकुश के रहवासी: मंजू काला, सीमांत का प्रहरी भोटिया समुदाय: प्रवीण कुमार भट्ट, उत्तराखंड में गुर्जर: निशांत वर्मा, जौनसार बावर अतीत से भविष्य तक, सुभाष तराण, गज्जू मलारी (लोकगाथा): कल्पना बहुगुणा, किन्नौर की हीर फूलमा (संकलन) मंजू काला, वह बना दिया जो नहीं था: डॉ अरूण कुकशाल। ये सभी आलेख पठनीय हैं और कुछ न कुछ जानकारियां हमें दे जाते हैं।
लोकगंगा का यह अंक बहुमूल्य जनजातीय सांस्कृतिक सम्पदा से परिचित कराने का महत्वपूर्ण प्रयास है। धार्मिक, सामाजिक और भाषिक विविधताओं से युक्त भारतीय समाज में इस प्रकार के प्रयासों की प्रासंगिकता और महत्ता बढ़ जाती है। इस प्रकार की सामग्री हमें विविध समाजों और संस्कृतियों की खूबसूरती से परिचित कराते हुए आपसी समझ और रिश्तों को मजबूत बनाने में भी मददगार हो सकते हैं। आज के सामाजिक तानो-बानो के छीजते दौर में इसे एक जरूरी दस्तावेज कहा जा सकता है। इस दृष्टि से भी यह अंक पठनीय और संग्रहणी है।
पत्रिका का नाम: लोकगंगा
समीक्ष्य अंक: जुलाई 2021 का मध्य हिमालय की जनजातियां पर केन्द्रित विशेषांक
संस्थापक/प्रधान सम्पादक: योगेश चन्द्र बहुगुणा, सम्पादक: डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, संयुक्त संपादक: मंजू काला
सम्पादकीय सलाहकार: सावित्री काला, डॉ. कमला पंत, डॉ. सविता मोहन, डॉ. विद्यासिंह, शशिभूषण बडोनी
विशेष सहयोग: पराशर गौड़ (कनाड़ा)
प्रकाशक: कल्पना बहुगुणा, लोक गंगा कार्यालय सी-1, स्ट्रीट-6, शास्त्री नगर, हरिद्वार रोड़, देहरादून-249204, संपर्क सूत्र-9897703216, 7906011857
आवरण: अभिनव बहुगुणा, परिकल्पना: कल्पना बहुगुणा, मंजू काला, पृ.सं.: 156, मूल्य: 200.00