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वरिष्ठ कवि डाॅ सत्यानन्द बडोनी की गढ़वाली रचना… मेरि छः माॅ, मेरि छः

डाॅ सत्यानन्द बडोनी
देहरादून, उत्तराखण्ड


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मेरि छः माॅ, मेरि छः

लड़दा था कबि जैं, माॅ का बाना हम सबि।
मेरि छः माॅ, मेरि छः, बोल्दा था हम कबि।
भै-बैणों कि लड़ैमा, टळ खतेगि प्यार सबि।
प्यार कि गागरी, छुलबुल रन्दी थै कबि।
देखि छळकेन्दु प्यार, नौनौं मा माॅ कबि।

पुळकेन्दी थै कबि, थै माॅ इन कबि।
बच्चैं तैं देन्दी थै, गिच्चै कु गास माॅ।
पट्ट पुडे़न्दा था हम, माॅजी का गात मा।
कृपा थै माॅकि इन, इन बाबा जी बि था।

डाम धरि जुकडि़ मा, खूब खिलै घुघि मा।
कैकि लगि नजर इन ?नि हेन्ना ऊॅ जनै।
टक्क लगिं हम जनैं, कब आला गौं जनैं।
धार जथैं टकटकि, आॅखि ऊंकि रसमसि।
एै जाला अजौं बि, आस बंधी हळकि सि।

इन बि नि कि सबि, एक जना छन सबि।
क्वी निभौणा छन सबि, धर्म अपणु अबि।
रख्यां छन बै-बुबा, ब्यूंत सि दगड़ा मा।
इज्जत-परमत निभौणा, बाजाजैं दगड़ा मा।

घत्त-मत्त देखि तैं, क्वी निभौणा बै-बुबौं।
कैकि करिं दुर्दशा, नि निभौंणा बै-बुबौं।
सिवाळ्यां बै-बुबा, जीना निस या ओबरा।
क्वी जैं फोड़णा छन, बै-बुबौं का खोपड़ा।

लाण त लाण कथा बै-बुबौं कि व्यथा।
कथा हो या व्यथा, जाणदा छन हम इथा।
बारि लगिं एैंसू हाॅ, माॅजी ठुल्ला भैजी माॅ।
बाबा जी ह्यून्द तलै, छन काण्सा भैजी माॅ।

जुदा कर्यां बै-बुबा, बुढ्यान्दि दाॅ इन किलै।
पुत्र रूप मा पाप पुंज, पापी बण्याॅ इन किलै।
बै-बुबौं कि करदि रां, खूब हम सेवा-टौळ।
पृथ्वी छः गोळ-मौळ, हम बतौणु छः भूगोल।
सबि छ्वी गोळ-मोळ, अपणा मन तैं खरोळ
हक्का तैं कर्ला घोर, घोर बणिं मिलि भोळ।

जैन जन बोण भैजी, तनि वैन लांैण छः।
जग्दि मुछाळि जगिक, पिछाणि जैं आंैण छः।
या बात भैजी मेरि नि, भितरै कि बात छः।
संुण अर गंुण वाळि, बात भैजी आज छः।

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