जल संरक्षण व जल स्रोतों की पहचान को हो तकनीकी संयंत्र का उपयोग: डोभाल
देहरादून। जल संरक्षण व जल स्रोतों की पहचान के लिए तकनीकी संयंत्रों का प्रयोग किया जाना चाहिए। साथ ही इस दिशा में और अधिक शोध होने चाहिए। उत्तराखंड स्टेट काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के महानिदेशक डॉ राजेंद्र डोभाल ने यह बात दून विश्वविद्यालय की ऑनलाइन कार्यशाला में कही। उन्होंने कहा जल संरक्षण व जल स्रोतों की पहचान के लिए और अध्ययन होना चाहिए।
दून विश्वविद्यालय के डॉ नित्यानंद हिमालयन शोध एवं अध्ययन केंद्र की ओर से शनिवार को ‘ भू जलीय विज्ञान’ पर कार्यशाला आयोजित की गई। इस अवसर पर श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय टिहरी गढवाल के कुलपति डॉ पीपी ध्यानी ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों के विकास के लिए विशेष नीति बननी चाहिए। हिमालय क्षेत्र जल संसाधन का महत्वपूर्ण स्रोत है, विश्व के कई देश आज शुद्ध जल की समस्या से जूझ रहे हैं, इसलिए समय रहते जलस्रोतों का संरक्षण किया जाना चाहिए। और इस दिशा में शोध को प्रोत्साहित करना आवश्यक है। कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे दून विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एके कर्नाटक ने कहा के कहा कि प्रकृति ने मनुष्य को कई महत्वपूर्ण उपहार निशुल्क दिए हैं। उन उपहारों का समुचित उपयोग कर सतत विकास के मॉडल को अपनाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां को परेशानियों का सामना न करना पड़े। उन्होंने नदियों, झीलों मिट्टी की नमी एवं जलस्रोतों और उनके संरक्षण पर विस्तार से चर्चा की। और शोधार्थियों का आवाहन किया कहा की कृषि व उद्यानिकी के क्षेत्र में इस प्रकार की प्रजातियां विकसित की जाएं जो कम से कम पानी से तैयार हो सकें। कार्यक्रम का संचालन व कार्यशाला की संरचना डॉ नित्यानंद हिमालयन शोध एवं अध्ययन केंद्र के प्रो एमेरिटस डॉ डीडी चैनियाल ने किया। कार्यशाला में कुमाऊं विवि के जेएस रावत, गढवाल विवि के प्रो एचसी नैनवाल, प्रो एसपी अग्रवाल, काशी हिंदू विवि के प्रो एम जोशी, प्रो एसपी राय, प्रो एसके भर्तिया, प्रो चमंपति रे आदि ने जल संरक्षण एवं भू जलीय विज्ञान पर विस्तार से चर्चा की। विश्वविद्यालय के प्रो एचसी पुरोहित ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर डॉ सपना सेमवाल, गजेंद्र सिंह नेगी आदि मौजूद रहे।