प्रवेश उत्सव: बुरांस परिवार ने उपहार देकर किया बच्चों का स्वागत
-अभिभावकों ने राजकीय विद्यालय के प्रति विश्वास जताया, हरसम्भव सहयोग का दिया भरोसा। भावी पीढ़ी को जीवन की दिशाहीन घटनाओं से बचाना है तो भावनात्मक संबल के साथ-साथ सीधा संवाद बनाये रखने की ज्यादा आवश्यकता है बालमन के साथ।
संकलन- दीपक नेगी/कमलेश्वर प्रसाद भट्ट
उत्तराखंड में राजकीय विद्यालयों के प्रति आमजन का विश्वास बढ़े, इस उद्देश्य से प्रदेशभर में प्रवेशोत्सव मनाकर विद्यालयों में नव प्रवेशी बच्चों का स्वागत किया जा रहा है। राजकीय इण्टर कॉलेज बुरांसखंडा के स्टॉफ ने सीनियर छात्रों व स्थानीय अभिभावकों के साथ मिलकर प्रवेश उत्सव मनाया।
प्रवेश उत्सव का शुभारंभ पूर्व छात्राओं द्वारा माँ सरस्वती का आह्वान करते करते हुए किया गया, वहीं स्वागत गीत के साथ नव प्रवेशी बच्चों को स्वनिर्मित ग्रीटिंग कार्डस देकर प्रोत्साहित किया गया। पूर्व व नवीन बच्चों के बीच खुला संवाद के साथ ही लोकसंस्कृति का आदान-प्रदान भी हुआ। स्कूल बैग, कलर बॉक्स, लेखन सामग्री के अलावा विभाग द्वारा प्राप्त निःशुल्क पुस्तकें देकर बच्चों को प्रोत्साहित किया गया। बच्चों को मौसमी फल, मिष्ठान के रूप में हलवा एवं गुणवत्तापूर्ण भोजन करवाया गया।
वास्तव में कार्य को बोझ न मानें तो आनन्द ही आनन्द है, किन्तु ढ़ेर सारी जिम्मेदारी भी। सही मायने में हर पल सजग रहने की आवश्यकता है। भौगोलिक दृष्टि से दुर्गम क्षेत्र स्थित विद्यालय जहाँ अक्सर तेज हवाएं, वर्षाती मौसम, घनघोर कोहरा और विजिबिलिटी शून्य। जी हाँ, आज भी सोलह से अट्ठारह किमी पहाड़ी रास्ते की आने-जाने की पैदल दूरी, रास्ते में जंगली जानवरों व जोंक का भय अलग। फिर भी बच्चों में पढ़ने की ललक, हमें उनके लिए कुछ विशेष अलग सा करने के लिए प्रेरित करता है।
शिक्षाविदों द्वारा बच्चों के लिए बार-बार मनोवैज्ञानिक शिक्षा की वकालत की जाती है, और तब गाँधी जी, अरविन्द घोष, स्वामी विवेकानंद, रूसो, जॉन डी वी एवं गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर जैसे दार्शनिक विद्वतजनों की बात आती है, जिन्होंने प्रकृति के आँचल में शिक्षा लेने की पैरवी की है। सौभाग्य से उत्तराखंड में प्राकृतिक संसाधनों एवं भौगोलिक परिस्थितियों से लेकर कई अन्य चुनौतियों के बीच शिक्षण व पाठ्यसहगामी क्रियाकलापों को आगे बढ़ाया जा रहा है।
यदि हम सामाजिक ताने-बाने को गौर से देखें तो आज का बचपन संघर्षों से घिरा हुआ दिखाई देता है, जहाँ एक ओर साधन सम्पन्न परिवार के बच्चे उपलब्ध सुख-सुविधाओं का दुरुपयोग कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सुविधा विहीन बच्चे अपने भविष्य की ओर टकटकी लगाए हुये हैं। कोरोना कॉल ने इस बात का अहसास भी करवा दिया है, यद्यपि जनसहभागिता भविष्य के लिए शुभ संकेत है। दूरस्थ क्षेत्रों के बच्चों की सुरक्षा व्यवस्था व स्वास्थ्य को लेकर उनका मनोबल बढ़ाने एवं उनमें आत्मविश्वास की भावना को विकसित करना और भी महत्वपूर्ण है।
वास्तव में शिक्षा का मूल उद्देश्य बच्चे के सर्वांगीण विकास से है, यह सीखने व सिखाने की प्रक्रिया है जो अनवरत रहनी चाहिए। बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए अच्छे वातावरण के साथ-साथ अच्छा स्वास्थ्य, सुरक्षा व संरक्षण भी जरूरी है, यह जिम्मेदारी घर में माता-पिता और अन्ततः एक आदर्श शिक्षक अर्थात सुगमकर्ता की ही है। आज भले ही कुछ अज्ञानी पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध में अन्धतावश शिक्षकों को भला-बुरा कहने में स्वयं को गौरवान्वित समझते हैं, किन्तु इन सबके बावजूद शिक्षक पूर्ण मनोयोग से अपना कर्त्तव्य निर्वहन कर निःस्वार्थ भाव से सेवा में संलग्न हैं।
प्रधानाचार्य दीपक नेगी ने कहा कि विद्यालय में अनुभवी विषय विशेषज्ञ अध्यापक हैं। उन्होंने अभिभावकों को विश्वास दिलाते हुए कहा कि बच्चे को मशीन की तरह नहीं लिया जा सकता, हर बच्चे का दिमाग है, अलग-अलग बच्चे को उनके अनुसार ही फीडिंग की आवश्यकता होती है, जो कि उन्हें आवश्यकतानुसार दी भी जाती है। कई बार संसाधन आड़े आ जाते हैं, किन्तु उपलब्धता के अनुसार पूर्ण भी किये जाते हैं। उन्होंने कहा कि भावी पीढ़ी को जीवन की दिशाहीन घटनाओं से बचाना है तो भावनात्मक संबल के साथ-साथ उनके साथ सीधा संवाद बनाये रखने की और भी ज्यादा आवश्यकता है। हमनें इस क्षेत्र में महसूस किया कि इन बच्चों को शिक्षा से पहले इनकी स्वास्थ्य और सुरक्षा की समुचित व्यवस्था आवश्यक है। इन बच्चों को भी वही बचपन मिले जो, तितलियों के पीछे भागते हुए आनन्द की अनुभूति करे, बारिश के पानी से भीगकर कंप-कपायें नहीं, बल्कि उसकी वास्तविकता को महसूस करें। इसमें कोई शक नहीं, यह सब स्वयंसेवियों द्वारा समय-समय पर दिये गए सहयोग से सम्भव हो पा रहा है।
इस अवसर पर रायपुर ब्लॉक के कनिष्ठ प्रमुख राजपाल मेलवाल ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालय में सह-शिक्षा का होना कोई नई बात नहीं है। यद्यपि तकनीकी युग में बच्चों का मानसिक स्तर बहुत ऊँचा हुआ है, किन्तु कतिपय शिक्षा के ठेकेदार समझने वाले घुसपैठियों द्वारा साइवर-कैफ़े अथवा सोशल-साइट्स का गलत फायदा उठाकर समाज में विभिन्न प्रकार की विकृति देखने को मिलती हैं तो अजीब सा लगता है। देश में हर रोज कोई न कोई भेड़िये के रूप में घटना को अंजाम दे रहे हैं। हमारा सौभाग्य है कि इस क्षेत्र में पैरेंट्स बच्चों के प्रति जागरूक हैं। उन्होंने कहा कि बच्चे जो कुछ भी सोचते हैं वह सब उनके लिए तो सही है किन्तु उन्हें उचित-अनुचित का एहसास करवाकर सही मार्ग-निर्देशन की आवश्यकता होती है। हमें अपने शिक्षकों पर पूरा विश्वास है, जिनका मार्गदर्शन बराबर प्राप्त होता है।
पीटीए अध्यक्ष सुमेर भण्डारी ने अपने संबोधन में कहा कि बच्चों में भटकाव की स्थिति उत्पन्न न हो, विशेषकर बालिकाओं में असुरक्षा की भावना न हो इसके लिये शिक्षक-अभिभावक सुगमकर्ता के रूप में उनके मार्गदर्शक रहें। सतर्क रहने की आवश्यकता है। समाज के हर वर्ग को चिंतनशील होना पड़ेगा। हमारे लिए सुखद है कि हमारे बच्चों में नैतिक मूल्यों का समावेश है और वे अनुशासित हैं।
उत्सव में प्रधानाचार्य दीपक नेगी, कनिष्ठ प्रमुख राजपाल मेलवाल, वरिष्ठ प्रवक्ता नन्दावल्लभ पंत, कृष्ण कुमार राणा, राजेन्द्र सिंह रावत, कमलेश्वर प्रसाद भट्ट, प्रियंका घनस्याला, नेहा बिष्ट, जयप्रकाश नौटियाल, मनीषा शर्मा, संगीता जायसवाल, सुमन हटवाल, रोहित रावत, प्रवीन, राकेश, अभिभावक उत्तम सिंह, वृजमणि, राजेन्द्र, पंकज एवं नव प्रवेशी बच्चे वंशिका, राजेश, ईशान, कुलदीप, स्वाति व रोहन के अलावा विद्यालय के पूर्व छात्र-छात्राएं सम्मिलित हुए।