डॉ निशंक का नया पाठ्यक्रम, बच्चे सुनेंगे पंचतंत्र की कहानियां
देहरादून। नई शिक्षा नीति के तहत नर्सरी से लेकर उच्च शिक्षा तक पाठ्यक्रम में बदलाव किए गए हैं। सबसे सुखद यह भी है कि अब छोटे बच्चे पंचतंत्र की कहानियां सुन सकेंगे। पंचतंत्र यानी भारतीयता। भारतीय समाज की बात। दादी-नानी की बात। लंबे समय से पाठयक्रम ने बदलाव की मांग की कर थी। वर्तमान सरकार ने उसे अमलीजामा पहना दिया है।
नए पाठ्यक्रम में नर्सरी से दूसरी कक्षा तक पंच तंत्र की कहानियां बच्चों को सुनने को मिलेंगी। शिक्षा की शुरूआत में बच्चों को दादी नानी की वो सब किस्से कहानियां और सीख नए ढंग से पाठयक्रम में मिलेंगी। बच्चों को खेल खेल में बड़े बुजुर्गो का सम्मान करना, छोटों से प्रेम, देशभक्ति, क्षमा, धैर्य, करुणा, पर्यावरण बचाना आदि के बारे में सिखाया जाएगा।
तीसरी से आठवीं कक्षा तक इन विषयों को पाठयक्रम में विस्तार से समझाया जाएगा। इसमें स्वच्छता, मानसिक स्वास्थ्य, शराब, तम्बाकू व मादक पदार्थों का नुक़सान की वैज्ञानिक व्याख्या भी बाकायदा पाठयक्रम में शामिल की गई है। साथ ही भारतीय संविधान के कुछ अंश भी पढ़ाए जाएंगे।
तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की हैं पंच तंत्र की कहानियां
संस्कृत नीति कथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है। हालांकि, यह पुस्तक मूल रूप में नहीं है। उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास निर्धारित की गई है। पंच तंत्र में बहुत कुछ तो ज्ञानवर्धक है ही बच्चों के लिए भी बहुत कुछ है। इसीलिए शिक्षा की शुरूआत ही अब पंच तंत्र की कहानियों से होगी।
पांच भागों में है पंच तंत्र
पंचतंत्र को पाँच तंत्रों (भागों) में बाँटा गया है। मित्र भेद (मित्रों में मनमुटाव व अलगाव), मित्र लाभ या मित्र संप्राप्ति (मित्र प्राप्ति व उसके लाभ), काकोलुकीयम् (कौवे एवं उल्लुओं की कथा), लब्ध प्रणाश (हाथ लगी चीज (लब्ध) का हाथ से निकल जाना), अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें , हड़बड़ी में कदम न उठायें)। पंचतंत्र की कई कहानियों में मनुष्य-पात्रों के अलावा पशु-पक्षियों को भी कथा का पात्र बनाया गया है, उनसे कई शिक्षाप्रद बातें कहलवाई गई है।