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देहरादून से शाइर जीके पिपिल की एक ग़ज़ल… किसी भूली बिसरी कहानी की तरह

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड
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“गजल”
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किसी भूली बिसरी कहानी की तरह
किसी दरिया के उतरे पानी की तरह।

हम यादों से उसकी हुये ऐसे विस्मित
अंगूठी परीक्षित की निशानी की तरह।

राजा खुशियों का अभी आया ही नहीं
जिंदगी खुद जी रही है रानी की तरह।

वक़्त गुजरा है कुछ इतनी रफ़्तार से
किसी बूढ़े की बीती जवानी की तरह।

अपना सर्वस्व देकर भी उसको लगा
वो खुश है बहुत कर्ण दानी की तरह।

हमें सुख दुःख की कोई परवाह नहीं
मुनाफ़े को भी लेते हैं हानि की तरह।

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