हरीश कंडवाल मनखी की कलम से…. राखी बनाम हिंदुत्व
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से
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उनियाल पंडित जी अपने थैले में जनेऊ के साथ लाल, हरे, पीले, नीले रंग की रखड़ी (राखी) लेकर घर से निकले। रास्ते पर जाते-जाते उनको दूसरे पंडित बहुगुणा जी भी मिल गए। आपस मे दोनों बदलते दौर और सनातन धर्म मे समय के अभाव पर चर्चा करते करते गाँव में पहुँच गए। उस गाँव में दोनों के यजमान रहते हैं। दोनों अपने-अपने यजमानों के यँहा जाकर राखी बांधने लगे। सभी के घरों में राखी का हर्ष और उल्लास था। उनियाल पंडित जी के कुछ यजमान जनेऊ पहनते थे कुछ नहीं, ऐसे ही बहुगुणा जी के भी थे।
इस बार एक नवयुवक यजमान जिसकी नई-नई शादी हुई थी, उसको भी पंडित जी ने राखी बांधी और जनेऊ पकड़ाते हुए कहा कि आपने शादी वाले दिन यज्ञोपवीत धारण किया होगा, अब उसको बदलकर नया धारण करो। इस पर नवयुवक ने कहा कि पंडित जी मैंने तो उसी दिन ही वह जनेऊ निकालकर गंगा में प्रवाहित कर दिया था। मैं इसके नियमो में उलझ कर नही जी सकता। यह सुनकर पंडित जी हैरान नही हुए, उन्होंने यजमान को कहा कि आपकी गलती नही है, गलती हम सबकी है। हम हिन्दू धर्म को केवल सुरक्षा की दृष्टि से देखते हैं, वास्तविक जीवन मे कभी पालन नही करते हैं। शादी, मुंडन, नामकरण संस्कार में अक्सर देखने मे आता है कि यजमान के पास पूजा में बैठने का समय नही होता है। बडे-बूढ़े, बच्चे टीवी मोबाइल और महफ़िल में चार घण्टे बर्बाद कर लेंगे, वह नही खलेगा। लेकिन, यदि सत्यनारायण की कथा करते 15 मिनट देर हो गई सबको जमाई आने लगती है।
सोशल मीडिया में हिंदुत्व का झंडा बुलंद करने वाले जनेऊ धारण नही कर पाते हैं, उसे नियमो का बोझ समझते हैं। सिर पर चोटी रखना पिछड़ापन समझते हैं, पूजा में बैठना समय की बर्बादी समझते हैं, धर्म की किताब पढ़ना दतियानूसी मानते हैं, भागवत गीता और रामायण को एक किनारा कर शेक्सपियर के उपन्यास को रोचकता से पढ़ते हैं, ऐसे लोग ढोंगी है या फिर हम जो जनेऊ धारण करने वाले और पूजा-पाठ को विधि-विधान से करते है और करने को कहते है, वह ढोंगी और आडम्बर है।
हिंदुत्व का प्रचार करना हमारा कर्तव्य है। लेकिन, उसका पालन करना हमारा धर्म। जब तक हम अपने घर मे अपनो को संस्कार नही देते, तब तक सोशल मीडिया में लाख चिल्लाने पर भी हम इसके प्रभाव को नही समझ पाएंगे। क्योकि, परिवर्तन घर से आता है, हृदय से आता है। पूजा-पाठ या हमारे 16 संस्कार, हमारे धार्मिक ग्रंथ सब असीम ज्ञान से परिपूर्ण है, एक बार उन्हें पढ़कर और समझकर देखिए, खुद ही पता चल जाएगा। आपके अंतःकरण को जो अच्छे लगे उसे स्वीकार कीजिये। कट्टर मत बनो, सबका सम्मान करो। लेकिन, अपना आत्म सम्मान कभी मत डिगने देना। धर्म की रक्षा हेतु यदि अस्त्र-शस्त्र उठाने पड़े तो उठाओ, यही भागवत गीता और रामायण की सीख है।नवयुवक यजमान पंडित जी की बात ध्यान से सुन रहे थे, यह सब सुनकर समझ कर उनके पास कोई जबाब नही था, तब उन्होंने पंडित जी से उसी समय जनेऊ लिया और उसके धारण करने के नियम पूछे। उसी दिन से चोटी रखने और घर मे हिंदुत्व को धारण करने का संकल्प लिया।
राखी बांधने के बाद पंडित जी को यथा स्वेच्छा नुसार दक्षिणा देकर आशीर्वाद लेकर विदा किया। आज उनियाल पंडित जी की खुशी चेहरे पर साफ झलक रही थी, इतने में बहुगुणा पंडित जी भी मिल गए। उन्होंने उनियाल पंडित जी के चेहरे के खुशी के भाव पढ़ लिए और मजाक करते हुए कहा कि आज तो यजमानों ने खूब दक्षिणा दे दी है। पंडित जी ने कहा कि आज मेरे लिये यजमान की दक्षिणा से ज्यादा एक नए हिंदुत्व को जागृत किया है, जो अपने धर्म की महिमा को समझ गया है, उसके बाद सारी बात बहुगुणा जी को बतायी। उनियाल जी और बहुगुणा जी ने भी आपस मे राखी बांधकर हिंदुत्व के सार्थक प्रचार-प्रसार व घर-घर मे इसके महत्व के जागरूकता फैलाने के लिये संकल्प लिया।