हरीश कंडवाल ‘मनखी’ की कलम से… पंचायत चुनाव के समीकरण में फंसी बिंद्रा दादी औऱ बंचू दादा
बंचू दादा की उम्र लगभग 65 साल की होगी। अपने जमाने के मिडिल पास है, गाँव में बड़ा मान-सम्मान है। पहले से ही गाँव के सामाजिक और बुद्धिजीवी लोगों में जाने जाते हैं। दो बार गाँव के निर्विरोध प्रधान भी रह चुके हैं, उनके जमाने में प्रधान का पद इज्जत का पद होता था। उसके बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया है। गाँव के प्रधान बनवाने में आज भी उनकी बड़ी भूमिका है। आज गाँव मे उनको अमित शाह बाड़ा के नाम से जाना जाता है।
इस बार के पंचायत चुनाव में बंचू दादा के गाँव से 4 उम्मीदवार प्रधान पद के दावेदार है। गाँव मे 5-6 जाति के लोग रहते हैं। इस बार चारों उम्मीदवार में से दो एक जाति से और दो अलग जाति के है। गाँव में इस बार लोग किसी का भी प्रचार खुलकर नही कर रहे हैं। चारों प्रत्याशी अपनी अपनी गणित के समीकरण लगा रहे हैं।
इधर, बिंद्रा दादी अपनी घर के आँगन की टकेरी में बैठी है। गाँव मे इस वक्त खूब हलचल है। हर प्रत्याशी उनके पाँव में पड़ रहा है, कोई गला लग रहा है, कोई पूछ रहा है कि दादी तुमको खाँसी तो नही हो रही है, मैं बाजार जा रहा हूं दवाई ले आऊँगा। दादी सोच रही है कि ये तो कभी हाल-चाल भी नहीं पूछता था, आज यह दवाईयों के लिये पूछ रहा है। उधर, से दूसरे गाँव से बीडीसी वालो का दल बल भी आ गया है। बिंद्रा दादी के पैरों में सब प्रणाम कर रहे हैं, कोई दादी तो कोई फूफू का दूरदराज के रिश्ते भी निकाल रहे है। बंचू काका सोच रहा है कि मेरे बेटे की शादी में तो करीबी रिश्तेदार तक नही आये थे, अब तो सब रिश्तेदार दिखाई दे रहे हैं। दूसरा प्रधान प्रत्याशी दादी के लिए एक किलो चीनी और चायपत्ती किचन में रखकर आ गया है। तीसरे प्रत्याशी की पत्नी एक अधूड़ी घी यह बोलकर कि आपके खेत के पेड़ काटते है, उसका त्याड़ है। चौथे प्रत्याशी ने दादी के घर मे किलो अनार रख दिये कि तुम दोनों कमजोर हो गए हो इन्हें खा लेना।
बंचू दादा किंगमेकर है, वह भी अपनी गणित लगा रहे हैं। सारे प्रत्याशी देर रात उनसे बात करने आ रहे हैं। अलग-अलग वैराइटी की बोतल आ रही है। बंचू दादा किसी प्रत्याशी को निराश नही कर रहे हैं, सबका उत्साह बढ़ा रहे हैं। गाँव के आगे दुकान में सब शाम को इकट्ठे होकर एक दूसरे का तोड़ निकालने में लगे हैं, हर कोई झुंड बनाकर रणनीति बना रहे हैं। एक-दो तो प्रवक्ता बनकर अमेरिका की विदेश नीति पर मोदी प्रभाव पर तर्क-वितर्क और कुतर्क कर रहे हैं। दूसरा, पाकिस्तान पर अभिभाषण दे रहा है। पंचायत चुनाव में राष्ट्रीय पार्टी के योगदान को गिना रहे हैं। हल्का-हल्का अंधेरा हो गया है। प्रवक्ता अपने घर की तरफ जाने लगे हैं। जैसे ही दोनों विदेश नीति के रणनीतिकार दुकान से बाहर गए, दुकानदार बोल रहा है कि पिछ्ले चार महीने से बीड़ी के बंडलों का उधार नही चुकाया है, यँहा बन रहे हैं अर्थशात्री और विदेश नीति निर्धारक।
चुनाव के आखिरी दो दिन बचे हैं, सारे प्रत्याशी मतदाता सूची लेकर गणित लगा रहे हैं। पक्के वोट, साइलेंट वोट, संशय वोट, पलटू वोट। इसके अलावा गाँव से बाहर बसे प्रवाशियो के वोट इनकी अलग सूची है। प्रत्याशियों ने लाल, हरा, नीला और काला पेन रखा है। लाल का मतलब ये संशय वाला है, हरा का मतलब पक्का वाला और नीले का मतलब साइलेंट मतदाता है औऱ नीले का मतलब पक्ष में आ सकता है। सारी परिमेय लग रही है, बीजगणित के द्विबीजीय सूत्रों का प्रयोग कभी स्कूल में पढ़ने के दौरान याद नही किये। आज अपने मैथ्स के गुरुजी को बहुत याद कर रहे है कि उस समय थोड़ा ध्यान दिया होता तो जातीय समीकरण को आज समझ लेते।
गाँव मे बंचू दादा चाणक्य प्रशांत कुमार के नाम से भी जाने जाते है। बंचू दादा ने हर प्रत्याशी के हिसाब से मतदाता की सूची बना रखी है। चार प्रत्याशी के लिए उसके व्यवहार, गाँव मे लोगो के रुझान के हिसाब से बनाई है । चुनाव के आखिरी दो दिन बचे हैं, अब मतदाताओ को जोड़ने-तोड़ने की हर कोशिश में लगे हैं। बंचू दादा ने सबको अलग-अलग टाइम दे रखा है मिलने को। देर रात तक गहन चर्चा चल रही है। हर एक के घर में दल बल के साथ प्रत्याशी पहुँच रहे हैं, लोग मिल रहे हैं, सबको हँसकर बात कर रहे हैं, हर प्रत्याशी के साथ एक दो चेहरे के हाव-भाव बोलने के तरीके पर विशेष ध्यान देकर उसके रूख से अनुमान लगा रहे हैं। एक-दो कुशल वक्ता भी साथ चल रहे हैं। महिलाओं को महिला वोटर को समझने परखने के लिये ले जाया जा रहा है। वैसे गाँव के लोग प्रधान प्रत्याशी के साथ परिवार के सदस्यों के अलावा कम ही लोग प्रचार के लिए जा रहे हैं। पोस्टर चिपकाने के लिए बच्चों में होड़ लगी है। चुनाव चिन्ह रटने पर लगे हैं। इस समय प्रत्याशी को उसके नाम से नहीं उसके चुनाव निशान से पुकार रहे है।
शाम हो गयी है बंचू काका के घर पर प्रत्याशी आ गया है, उसकी मतदाता सूची बंचू काका ने पकड़ा दी है, ऐसे करके सारे प्रत्याशी की सूची सबको दे दी है। बाहर प्रवासी जिनके नाम वोटरलिस्ट में है उनके नम्बर ढूंढ-ढूंढकर सबको फ़ोन करके सारी गणित वही समझाया जा रहा है। बाहर के चाणक्य को इधर-उधर से फ़ोन करके उसे तोड़ने की जुगत चल रही है। चिकन तो पर्ची पर मिल रही है, दारू का कोटा पहले से ही तैयार है। उधर, बिंद्रा दादी भी आँगन की टकेरी में बैठकर चुनावी पर्व की जलेबी की चाशनी में डूबकर सबके चुनाव निशान को पलटकर देख रही है, बंचू दादा एक पैग लगाकर कह रहा है, अब बणोल सब तै प्रधान।
नोट: सभी नाम काल्पनिक है, इनका वास्तविकता से कोई संबंध नही है, अगर किसी से मिलती-जुलती है तो मात्र संयोग कहा जाएगा।
©® @ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।