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हरीश कंडवाल मनखी कलम बिटी … अब वा बात नि रै ग्यायी

अब वा बात नि रै ग्यायी

काकी न ब्वाल बेटा अब
वा पैल जणि बात नि रै ग्यायी
लोग त उनी छन जन पैल छ्यायी
पर अब जमन भौत बदले ग्यायी।

ना उ रीति रिवाज ना बार त्यौहार
ना उ अपर परायी ना उन रिश्तेदार
बदल गेन सब बदल्याणा छन बात विचार
अब कख रै ग्यायी उ पैल जणी शिष्टाचार।।

अब न्यूतेर जगह मा मेहंदी ह्वे ग्यायी,
नौबत लगाण जगह मा पंजाबी गीत मिसे दयायी
ढोल दमो मशकबीन, अब बैण्ड बाजा ह्वे ग्यायी
अब क्या कन बेटा उ जमन नि रै ग्यायी।।

ब्यो बरतयूं मा मांगळ गीत अब नि रायी
बाना बगत जीजा स्याळी वा मजाक कख ग्यायी
द्यूर नणद भौजी पैल जणी नि रै ग्यायी
फड़ मा दाळ भात स्वाद हरची ग्यायी।।

सवाल या छ बेटा अब हम केक गढ़वली छवा
ना बुलंण आंद, ना बच्याण आंद
अपर गाँव नाम तकन भुली ग्यवा
बस अब हम सिर्फ नाम गढ़वळी रै ग्यवा।।

©®@ हरीश कंडवाल मनखी कलम बिटी।

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