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कवि हरीश कंडवाल ‘मनखी’ की एक रचना…. हिंदुत्व खतरे में लगता है

देहरादून, उत्तराखंड


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हिंदुत्व

जब जन्मदिन पर केक कटता है
जलती हुई मोमबत्ती बुझती है
पूजा करना टाइम बर्बाद लगता है
तब मुझे अपना हिंदुत्व खतरे में लगता है।

कान्वेंट स्कूल में प्रवेश दिलाने पर
अभिभावक का सिर गर्व से उठता है
विद्यारंभ संस्कार पिछड़ापन लगता है
तब मुझे हिंदुत्व खतरे में लगता है।

क्रिसमस के पेड़ पर लाइट लगाना शान है
हैप्पी क्रिसमस बोलकर जश्न मनाना गर्व है
घर मे लगी तुलसी केवल पौधा दिखता है
तब मुझे हिन्दुत्व खतरे में लगता है।

जब पूजा करना ढोंग लगता है
हरी चादर चढ़ाना श्रद्धा दिखता है
सत्यनारायण कथा बकवास होता है
तब मुझे हिंदुत्व खतरे में लगता है।

गले मे क्रॉस लटकाना फैशन लगता है
हाथों पर नाम गुदवाना बड़प्पन लगता है
माथे पर टीका लगाने में शर्म लगता है
तब मुझे हिंदुत्व खतरे में लगता है।।

अगर सच में हिंदुत्व को बचाना है
घर मे संस्कारो का पाठ पढ़ाना है
जिस दिन तुमने गीता/रामायण समझ लिया
उस दिन तुमने हिंदुत्व को स्वयं बचा लिया।

हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।

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