हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से … मणिकूट पर्वत परिक्रमा.. श्रद्धा व रोमांच से युक्त पद यात्रा
हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से
मणिकूट पर्वत परिक्रमा.. श्रद्धा व रोमांच से युक्त पद यात्रा
सावन के महीन में नीलकंठ यात्रा का अपना महत्व है। नीलकंठ महादेव का मंदिर मणिकूट पर्वत पर अवस्थित है। जितना महत्व नीलकंठ मंदिर में दर्शन का है उतना ही महत्व इसमें पद यात्रा का है। मणिकूट पर्वत पदयात्रा के दौरान 12 द्वारों की पूजा की जाती है, जिसका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है। इस यात्रा में आप किसी एक द्वार से यात्रा प्रारम्भ कर सकते हैं, लेकिन यात्रा का स्थगन भी उसी द्वार पर करना अनिवार्य होता है।
मणिकूट पर्वत
1. पांडव गुफा 2. गरूड़चट्टी 3. फूलचट्टी 4. कालीकुण्ड 5. पीपलकोटी 6. हिडोंला 7. कुशाशील 8. विन्ध्यवासिनी 9. नंदी द्वार (गोहरी रेजं) 10. वीरभद्र द्वार 11. गणेश द्वार 12 भैरव द्वार।
बड़े भाई व मित्र देवेन्द्र कण्डवाल ने जब मुझे मार्च में बताया कि वह अब तक 6 बार मणिकूट पर्वत परिक्रमा पदयात्रा कर चुके हैं। इस बार भी करने की योजना है। मैनें भी मन में सोच लिया था कि इस बार सावन में यदि यात्रा होगी तो मैं भी श्रद्धा से युक्त रोमांचकारी यात्रा करूंगा। 8 अगस्त 2021 को यात्रा करने का दिन तय किया गया। उस दिन शिवरात्रि भी भी थी। मैं यात्रा की तिथि के अनुरूप एक दिन पूर्व गंगा-भोगपुर बडे भाई देवेन्द्र कण्डवाल के निवास पर पहॅुच गया, रात्रि विश्राम वहीं था। रात में लगभग 01 बजे तक देवेन्द्र भाई के साथ स्थानीय मुद्दों पर चर्चा होती रही। देवेन्द्र भाई एक कुशल सामाजिक कार्यकर्ता के साथ यमकेश्वर राजनीति के चाणक्य हैं। तीन बजे सुबह उठने के बाद नित्य कर्म से निवृत्त होकर करीब पौने चार बजे घर से यात्रा के लिए प्रस्थान किया। नंदी द्वार पर हम आठ सहयात्री एकत्रित हो गये, जिसमें श्री देवेन्द्र कण्डवाल, श्री शुभम कण्डवाल, श्री शीषपाल रावत, श्री शोभन सिंह रावत, श्री वेद्रप्रकाश शर्मा, श्री नीरज शर्मा, श्री पुष्कर रणाकोटि और मैं स्वंय था। नंदी द्वार पर पूजा प्रारम्भ करने के उपरान्त बीन नदी पार करते हुए शक्ति नहर के मणिकूट पर्वत के तलहटी की ओर से पद यात्रा प्रारम्भ हो गयी। सुबह का झुरमुट अंधेरा, शांत बहती शक्ति नहर का दृश्य बड़ा ही रमणीक था। शिव भगत शिव का जाप करते हुए आगे बढते जा रहे थे, सुबह की यात्रा का अलग ही आनंद था।
लगभग डेढ घंटे की यात्रा के बाद बैराज में पहुॅचे, जिसको वीरभद्र द्वार कहते हैं, बैराज में मॉ गंगा के दर्शन करते हुए सड़क मार्ग से यात्रा अविरल बढती गयी। कुंभी चौड़ जाकर गणेश द्वार पर पूजा करने के उपरान्त फिर आगे भैरव द्वार पहॅुचे। वहॉ से हम लोग चर्चा करते हुए आगे बढते रहे। उसके बाद हम लोग लक्ष्मणझूला से आगे पाण्डव गुफा पहॅुचे और वहॉ से कुछ दूर जाकर लगभग 20 किलो मीटर की यात्रा पूरी करने के उपरान्त विश्राम के लिए बैठे, वहॉ पर हमने चाय पी और फिर आगे यात्रा के लिए अग्रसर हो गये।
श्री शुभम कण्डवाल और श्री पुष्कर रणाकोटि हम सभी यात्रियों में सबसे तेज गति से चल रहे थे। वहीं, श्री नीरज शर्मा (जिनका एक पैर फैक्चर हो रखा है जिस पर रौड़ चढी है के बावजूद भी) का जोश बरकरार था। हम लोग गरूड़ चट्टी पहुॅचे और वहॉ पर पूजा-अर्चना के उपरान्त यात्रा अनवरत शुरू कर दी। अब पैरों पर थकान होनी शुरू हो गयी लेकिन, भगवान भोलेनाथ की असीम शक्ति की कृपा हम पर बनी रही और हम पग को धीरे-धीरे आगे बढाते चले गये। इस यात्रा के बारे में सह यात्रियों के द्वारा जानकारी व अनुभव साझा किये जा रहे थे। फूलचट्टी द्वार से आगे नतमस्तक होते हुए कालीकुण्ड जो घट्टूगाड़ पर स्थित है वहॉ पहुॅचे वहॉ पर विश्राम करने के उपरान्त फलाहार के तौर पर हमने केला खाया।
अब यात्रा का अगला पड़ाव थोड़ा थकान भरा था क्योंकि अब हम मैदान से चढाई की ओर अग्रसर हो रहे थे। सूर्य देव भी बादलों की ओट से बाहर आकर किरण पुंज से हमें तप्त कर रहे थे। अब पैरों ने कहना शुरू कर दिया कि अपनी उम्र का पड़ाव और अपनी जीवन शैली तो देख लेते तब यात्रा का कार्यक्रम बनाते, लेकिन मन ने समझाया कि यात्रा तो प्रारब्ध द्वारा पूर्व निर्धारित तिथि व समयानुसार होती हैं, उसमें हम भला कैसे परिवर्तन कर सकते हैं। मन मस्तिष्क और श्रद्धा के बीच चलने वाले द्वंद मे पांव गतिशील थे, उपवास के कारण खाली पेट ज्यादा पानी पीना भी शारिरीक दृष्टि से अनुकूल नहीं था। खैरखाल से पीपलकोटी तक चलते चलते पूरा शरीर थक चुका था। सामने आमड़ी गॉव के पर्वत पर विराजमान बालकुवांरी का मंदिर व उसकी सीढीयां मन को मोह रही थी। नीलकंठ महादेव की असीम कृपा और उनकी दैवी शक्ति का ही चमत्कार है कि हम पीपलकोटी तक पहुॅच गये। पीपलकोटी में जाकर लगभग आधी यात्रा पूर्ण हो चुकी थी।
पीपलकोटी से अगले द्वार हिडोंला के लिए प्रस्थान किया। हिडोंला से जाते वक्त मुझे अपने बचपन के कई संस्मरण याद आ गये, क्योंकि मैं पहले अपने बुआ के घर आमड़ी इस रास्ते से कई बार गया हूॅ। हिडोंला में भगवान नरसिंह की पूजा-अर्चना करने के उपरान्त शरीर में एक नई स्फूर्ति आयी। वहॉ पर हमने चाय पी और हल्की बारिश में यात्रा का अगला पड़ाव पर जाने के लिए कमर कस लिया। अब यहॉ से रास्ता बहुत ही कच्चा और पहाड़ी था। हिडोंला से दिउली जाते कच्चे सड़क पर कीचड़ में जैसे-तैसे आगे बढते हुए दिउली स्कूल पहॅुचे, वहॉ पर थोड़ा बहुत आम के पेड़ से आम लेकर आगे बढे। दिउली से हम जैसे नीचे उतराई के लिए चले रास्ते पर बहुत भंयकर झाड़ी थी, इस रास्ते पर बुकंण्डी व अन्य गॉव के बच्चे स्कूल आते हैं, पिछले दो सालों से स्कूल नहीं खुलने से रास्ते की सफाई नहीं हो पाई, जैसे-तैसे करके हम नीचे त्याड़ो गाड़ उतर गये।
त्याडो गाड़ से नदी का पानी शुरू हो गया। पानी में कलच-कलच करते हुए हम आगे बढते गये। त्याड़ो गाड़ की खासियत यह है कि आप जितना आगे बढ़ते जाते हो, वह उतना ही दूर लगता महसूस होता है। कुशाशील द्वार से आगे बढते हुए हम विन्ध्यवासनी मंदिर की ओर बढ रहे थे, सामने सुंदर रिजॉर्ट सिलकोली और स्यांरगढ में नजर आ रहे थे, यहॉ पर आने वाले पर्यटकों के लिए यह त्याड़ो घाटी और तालघाटी ट्रेकिंग के लिए आकर्षण करने वाला क्षेत्र हो सकता है, लेकिन यहॉ के मूल निवासियों के लिए यह स्थल बरसात के समय अंडमान निकोबार बन जाता है। समय, देश काल और परिस्थिति के हिसाब से जगह की कीमत घटती-बढती है। इन्हीं सब चर्चाओं के साथ हम जैसे ही बेलवाला के करीब पहॅुचे तेज बारिश हो गयी। वहॉ पर डर लगने लगा कि हम नदी में कहीं फंस तो नहीं जायेगे लेकिन, जैसे-तैसे हम बारिश में विन्ध्यवासनी द्वार पर आ गये।
मॉ विन्ध्यवासनी के शरणागत होकर वहॉ पर हम अष्ठ भक्तों ने पूजा-अर्चना की, मॉ विन्ध्यवासनी व भोलेनाथ का कोटि कोटि आभार प्रकट किया कि आपने यह श्रद्धा पूर्ण रोमांच यात्रा अपनी असीम शक्ति के बल पर पूर्ण करवा दी। हमारी पूजा-अर्चना करते ही यहॉ बारिश बंद हो गयी, यह मेरे लिए बड़ी आश्चर्य जनक बात थी, जो बारिश इतनी तेजी से हो रही थी वह पूजा-अर्चना के 5 मिनट बाद अचानक रूक गयी। उसके बाद हमने नदी पार करते हुए कौडिया यानी गंगा-भोगपुर के लिए प्रस्थान किया। सांयकाल 6 बजे पुनः नदीं द्वार पर पूजा-अर्चना के बाद लगभग 52 किलोमीटर 14 घण्टे की पद यात्रा को विराम दिया गया। इस तरह मणिकूट यात्रा से हमें धैर्य साहस और लक्ष्य को कैसे पूर्ण किया जाय यह व्यवहारिक ज्ञान मिला।