हरीश कंडवाल मनखी की कान्हा को समर्पित एक रचना
देहरादून, उत्तराखंड
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वासुदेव देवकी के पुत्र
नंद बाबा यशोदा के सुत
दाहू भैया के तुम अनुज
द्वापर युग के तुम मनुज।
पूतना, बकासुर, अघासुर
तृणावत, वत्सासुर चक्रासुर
खेलकर इनको मार गिराया
अपनी शक्ति से परिचय कराया।
माँ यशोदा को मिट्टी खाकर
मुँह खोलने को कहने पर
सारा ब्रह्मांड अपने मुंह में
उनको प्यार से दिखलाया।।
आंगन में ठुमक ठुमक चलकर
सब देवो को कान्हा ने रिझाया
दही माखन की मटकी तोड़
माखन प्रिय माखनचोर कहलाया।।
गोपियों संग खूब रास रचाया
ग्वाल बाल संग ग्वाला कहलाया
कालिका मर्दन कर नृत्य दिखाया
सबका प्यारा कान्हा कहलाया।।
अपनी बांसुरी से प्रेम धुन गाया
राधा संग निश्छल प्रेम कर
सबको प्रेम करना सिखाया
राधाकृष्ण, राधे श्याम कहलाया।
गोवर्धन पर्वत धारण कर
इंद्र का अभिमान मिटाया
संदीपनी मुनि आश्रम में गुरु मान बढ़ाया
बाल सखा सुदामा संग चना चबाया।।
मथुरा जाकर कंस को मार गिराया
वासुदेव देवकी का पुत्र धर्म निभाया
भारी सभा मे द्रोपदी के चीरहरण पर,
नारी की लाज को तुमने बचाया
इसलिये श्रीकृष्ण से केशव कहलाया।।
महाभारत के युद्ध मे शांति दूत बन
दुर्योधन, कर्ण, शकुनि धृतराष्ट्र को समझाया
पार्थ का रथ हांककर, सारथी कहलाया
माधव बनकर तुमने गीता का पाठ पढ़ाया।
अधर्म के लिये, धर्म युद्ध जरूरी बताया
हथियार ना उठाने की प्रतिज्ञा तोड़,
भीष्म पितामह को सुदर्शन चक्र दिखलाया
महाभारत के युद्ध को तुमने जिताया।
हे श्रीकृष्ण तुमने मानव अवतार लेकर
जीवन का हर पाठ सबको पढ़ाया
रिश्तों की मर्यादा, आदर्शों का पालन
प्रेम की महिमा, मित्रता को निभाया
धर्म रक्षार्थ हेतु हथियार उठाना सिखाया।।
हर युगों तक आपकी शास्वतता रहेगी
तुम्हारी प्रेम बाँसुरी यूँही बजती रहेगी
भागवत गीता हमेशा कर्म प्रधान रहेगी
हे वासुदेव कहने पर जीवन मुक्ति मिलेगी।
©®@ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।