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हरीश कण्डवाल ‘मनखी’ की कहानी… पैतृक भूमि का सौदा

हरीश कण्डवाल ‘मनखी’
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड
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पैतृक भूमि का सौदा ( कहानी) 

रमन के पिताजी बचपन में ही अपने चाचा जी के साथ मुंबई आ गये थे, उसके बाद वह मुबई के होकर रह गये। रमन ने जब भी गॉव जाने की बात कही तो उसके पिताजी हमेशा यह कहकर टाल देते कि वहॉ तो जंगली जानवर रहते हैं, साथ ही वहॉ प्राकृतिक आपदा आती रहती है, वहॉ जाकर क्या करना है। रमन के बालमन में अपने पैतृक गॉव के प्रति एक डर सा बैठ गया। रमन की शादी हो गई वह कभी अपने गॉव नहीं जा पाया। शादी के बाद रमन की एक बेटी और एक बेटा हो गया, उनको तो कभी गॉव का अता पता ही नहीं था। वहीं रमन के एक चाचा जो दिल्ली में रहते थे वह कभी कभी फोन कर लेते थे।

वक्त बीतता गया, सक्षम भी बड़ा हो गया, वह कम्प्यूटर इंजीनियर का कोर्स पूरा करने के बाद वह नोयड़ा में प्रतिष्ठित कंपनी में कम्प्यूटर इंजीनियर की पोस्ट पर कार्यरत हो गया। वहॉ रहकर वह अपने दोस्तों के साथ उत्तराखण्ड घूमने आया।

उत्तराखण्ड में वह गंगा राफि्ंटिंग के लिए आया फिर वह घूमने के लिए नीलकंठ आदि स्थानों पर गया। वहॉ उसके दोस्त विपिन राठी के पिता का सुंदर सा रिजॉर्ट था, वह वहॉ रूका और खूब जीवन का आनंद लिया। उसको नहीं मालूम था कि उसका गॉव भी यहीं कहीं है। उसने अपने सोशल मीडिया मेंं गॉव और गंगा राफि्ंटिंग की फोटो के साथ रिजॉर्ट की फोटो एवं गॉव के पुराने मकानों की फोटो शेयर की।

फोटो को देखकर पहले सक्षम को उसके पिताजी का फोन आया कि बेटा आप कहॉ घूमने गये थे, उसने कहा कि पापा हम ऋषिकेश से आगे पहाड़ मेंं गॉव में गये थे वहॉ मेरे दोस्त विपिन राठी का रिजॉर्ट है, उसने गॉवों वालों से जमीन लेकर बहुत खूबसूरत रिजॉर्ट बना रखा है, मेरे को बहुत पंसद आया। यह सुनते ही रमन ने कहा कि उत्तराखण्ड के तो मूल निवासी हम भी हैं, हम तो कभी नहीं जा पाये,तेरे दादा जी कभी लेकर नहीं गये, हमें मालूम भी नहीं हैं कि हमारा गॉव कहॉ है, तेरे दादा जी हमेशा हमें डराकर रखते थे कि गॉव में आदमखोर बाघ रहता है, वहॉ प्राकृतिक आपदायें बहुत आती हैं, आज तक इस डर से हम गॉव नहीं गये।

ईधर रमन के चचेरे भाई जो दिल्ली में रहता था, उसने भी सोशल मीडिया में सक्षम की फोटो देखी तो उसने फोन करके सक्षम को पूछा कि बेटा तुम गॉव कब गये, और किसके साथ गये। सक्षम ने कहा कि चाचा जी मैं अपने दोस्त के साथ गया, वहॉ मेरे दोस्त के पिताजी का रिजॉर्ट है, साथ में उसके पापा वहॉ प्रोपर्टी डीलर का काम करते हैं, मुझे भी दो नाली जमीन दिखायी, जिसको लेने का मैं इच्छुक हैं, वह बता रहे थे कि इस जमीन के मालिक कुछ दिल्ली और कुछ बाहर रहते हैं, गॉव का कोई व्यक्ति उनसे सम्पर्क करवा देगा।
यह सुनते ही दिल्ली वाले चाचा ने कहा कि बेटा जमीन लेने से पहले एक बार मुझे भी ले चलना गॉव क्या पता उधर मैं भी खरीद लूॅ। पहाड़ों में आने वाले समय में जमीन के अच्छे रेट मिलने की उम्मीद है, मन करेगा तो वहॉ हम भी होटल या रिजॉर्ट खोल दें।

सक्षम और उसके दिल्ली वाले चाचा जी के द्वारा अगले हप्ते रिजॉर्ट घूमने और गॉव जाने के लिए योजना बन गयी। ईधर चाचा जी भी बरसों से गॉव नहीं गये थे लेकिन सक्षम की दी गयी फोटो से लग रहा था कि वह उनके गॉव के आस पास का क्षेत्र है। गॉव जाकर पिताजी के देहांत के बाद दोबारा जाना नहीं हुआ, उसके बाद जमीन का दाखिल खारीज भी नहीं चलाया गया। ईघर सक्षम के दादा, पिताजी तो गये ही नहीं उनके नाम का दाखिल खारीज और जमीन कहॉ कितनी है, कोई मालूम नहीं। दादा जी को तो गॉव का नाम तक पता था लेकिन रमन और सक्षम तो गॉव का नाम तक नहीं जानते थे। चाचा से भी कभी पूछा नहीं, बस सोशल मीडिया में कभी कबार हाय हैलो हो जाती थी। उन पर देवता भी नाराज नहीं हुआ, जो वह देवता पूजने के बहाने ही घर जाते, कभी लगा भी होगा तो आधुनिक सोच वाले उसको बीमारी समझकर मॅहगे अस्पताल में इलाज करवाकर आ गये होगे।

अगले हप्ते सक्षम और दिल्ली वाले चाचा नोयडा से साथ ही निकल पडे, सक्षम गॉव की तारीफ करते हुए अगाह नहीं रहा था। सक्षम ने अपने दोस्त के पिताजी को जमीन दिखाने और रिजॉर्ट बुक करने के लिए कह दिया। शाम को दोनें रिजॉर्ट मे रूके अगले दिन सुबह तीनों गॉव की जमीन देखने निकल पड़े।

रास्ते पर जाते हुए दिल्ली वाले चाचा को अपने गॉव के रास्ते की याद आतीगयी, पुरानी तस्वीरें सामने आती गयी, जैसे ही गॉव पहुॅचे तो देखा कि यह तो उनका ही गॉव हैं। अब बारी थी जमीन देखने की। सक्षम के दोस्त के पिताजी राठी अंकल ने उनको वह जमीन दिखायी जो सड़क से थोड़ा ऊपर थी। संयोग से उधर से ही पटवारी भी जा रहा था, पटवारी ने राठी अंकल को देखकर गाड़ी रूकवा दी, राठी अंकल से पटवारी की जान पहचान इसलिए थी कि राठी अंकल जमीन का खरीद फरोक्त करते रहते थे। राठी अंकल ने उनका परिचय कराते हुए कहा कि यह लोग भी यहॉ जमीन में इनवेस्ट करना चाहते हैं। पटवारी ने खाता खतौनी खोली, नक्शा देखा तो जमीन फते राम के नाम से निकली। सक्षम को अपने बूढे दादा जी का नाम तक नहीं मालूम था, वह तो अच्छा हुआ कि दिल्ली वाले चाचा साथ में थे। दिल्ली वाले चाचा ने पटवारी से कहा कि एक बार वह देबारा भूमि अभिलेखों को देखे फिर से बताये कि यह जमीन किसकी है।

पटवारी ने आश्चर्य जनक नजरों से देखा और कहा कि यह जमीन फते राम नामक व्यक्ति की है, अब वह कौन थे उन्हें नहीं मालूम। इतने में गॉव के एक वृद्ध व्यक्ति गायों को लेकर वहॉ से गुजर रहे थे तो उनको पूछा कि आपके गॉव में कोई पुराना व्यक्ति फते राम नाम का कोई था। उसने कहा हॉ हमारे स्वार भाई थे जिनका बेटा बचपन में ही मुंबई चला गया था और उसके बाद वह कभी घर नहीं आये, जिस जमीन पर तुम खड़े हो यह उनकी ही थी। यह देखकर सक्षम और दिल्ली वाले चाचा के पैरों तले जमीन खिसक गयी, आज वह खुद ही अपनी जमीन का सौदा राठी अंकल से करने आये थे, आज उनको अपने पूर्वजों और अपने पर पछतावा हो रहा था कि उन्होंने कभी उनको अपनी जमीन नहीं दिखायी। दिल्ली वाले चाचा को तो जैसे सदमा लग गया हो, सक्षम भी वहीं नीचे पत्थर पर बैठकर एक टक उस जमीन को निहार रहा था।

नोट: यह कहानी काल्पनिक मात्र है, इसके सभी नाम एवं पात्र काल्पनिक है, यदि किसी से मिलते है तो मात्र संयोग माना जायेगा।

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परिचय

हरीश कंडवाल “मनखी’
मूल निवासी ग्राम साइकिलवाड़ी ( दिवोगी) यमकेश्वर पौड़ी गढ़वाल
पिता का नाम : पंडित श्री गुणा नंद कंडवाल
शिक्षा एमए, बीएड
उप सम्पादक रन्त रैबार गढवाळी वेब पोर्टल
रुचि: हिंदी गढवाळी कविता कहानी एवं समसामयिक विषयो पर लेख।

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