हरीश कंडवाल मनखी की… बच्चे भगवान स्वरूप है
बच्चे भगवान स्वरूप हैं
नमन ने बड़े संघर्षों के बाद राजकीय विद्यालय में प्रवक्ता के पद पर नियुक्ति मिली। आज उसका परिवार बहुत खुश था। नमन की पहली पोस्टिंग देहरादून में चकराता के सुदूरवर्ती इंटर कॉलेज में हुई। पहले दिन नमन जब स्कूल ज्वाइनिंग करने गया तो वह प्रातः 9 बजे स्कूल में पहुँच गया। वँहा पर बच्चे आ गए, मॉनिटर ने सबसे प्रार्थना करवायी औऱ क्लास में बच्चे जाकर शोर शराबा करने लगे। कुछ देर बाद भागते दौड़ते प्रधानाचार्य आये उन्होंने सबको चुप कराया। अब धीरे धीरे सारा स्टाफ स्कूल पहुचने लगा। नमन ने अपना नियुक्ति पत्र प्रधानाचार्य को दिखाया तो उन्होंने कहा कि अभी बाबू नही आये हैं, उनके पास आप अपने सभी दस्तावेज जमा कर लो। स्कूल में लगभग 10 बज गए हैं, और शिक्षिकाएं जो देहरादून से आती हैं, वह पहुँच गयी हैं।। सबने उपस्थिति रजिस्टर में हस्ताक्षर किये और वह क्लास में चली गयी हैं। इधर तोमर जी जो बाबू के पद पर नियुक्त है, वह भी आ गए हैं। उन्होंने भी हस्ताक्षर कर थोड़ा चपरासियों के साथ दो चार बात की, फिर प्रधानाचार्य ने उन्हें अपने कक्ष में बुलाकर कहा कि ये नमन उनियाल है इनकी यँहा पर विज्ञान प्रवक्ता के तौर पर नियुक्ति हुई है, आप इन्हें ज्वाइनिंग दिला दो।
नमन की ज्वाइनिंग की प्रक्रिया पूर्ण कर पुनः प्रधानाचार्य के कक्ष में गए और उन्होंने उनसे स्कूल की जानकारी ली फिर उसके बाद लंच ब्रेक में सभी अध्यापकों से परिचय हुआ। नमन ने कहा कि उसे यँहा पर कमरा किराये पर रहने के लिये कँहा मिलेगा यह अन्य शिक्षकों से जानकारी ली तो उसके साथियों ने कहा कि आप तो देहरादून में रहते हो, रोज आना जाना हो जाता है, कँहा यँहा पर तुम पहाड़ में धक्के खाते रहोगे। वँहा से हमने एक मैक्स गाड़ी कर रखी है, आप भी उसमे आ जाना। नमन ने कहा ठीक है आप अपना नम्बर दे दीजिएगा। साथी शिक्षकों ने नम्बर दे दिये। लंच बाद दो वादन के बाद सभी शिक्षक देहरादून के लिए निकलने लगे और 3 बजकर 15 मिनट पर बच्चो की छुट्टी हो गयी ।
नमन रास्ते भर यही सोचता रहा कि मैं क्या करूं देहरादून से रोज आऊ या फिर यही कमर लेकर रहूं। वैसे तो सभी साथी शिक्षक रोज आते जाते हैं मैं भी आ जाऊंगा लेकिन उसका जमीर साथ नही दे रहा था। अंततः उसने फैसला लिया कि वह गाँव मे कमरा किराये पर लेकर वही से स्कूल आएगा जाएगा। अगले दिन नमन स्कूल आया और उसके बाद बच्चों से कहा कि कल पता करके लाना कि किसके यँहा कमरा किराये पर मिलेगा। नमन को गाँव मे कमरा मिल गया वह वंही रहने लगा ,औऱ लगन के साथ बच्चों को पढ़ाने लगा। शाम को निशुल्क बच्चों को ट्यूशन देता और फिर वह शनिवार को ही देहरादून आता और सोमवार को सुबह जल्दी स्कूल पहुँच जाता।
नमन के इस आदत से कुछ शिक्षकों को समस्या होने लगी ,क्योकि वह पूरे क्षेत्र में सबका चेहता बन गया। एक दिन नमन घर पर आया हुआ था तो उसके साथी अध्यापक भी उनके साथ आ गए, परिवार में सबके साथ मिलना हुआ। नमन की माँ ने साथी शिक्षक से पूछा कि आप भी वंही गाँव मे किराये पर रहते हो। उन्होंने कहा कि मैं तो यँहा से ही रोज आता जाता हूँ। नमन को भी हमने कहा था लेकिन इन्हें तो गाँव ही पसंद है।
नमन की माँ ने कहा कि नमन तुम भी चले जाया करो यंही से सब तो जा रहे हैं तुम भी ऐसे ही कर लिया करो। बेटा घर की रोटी तो घर की रोटी होती है देख कितना कमजोर हो गया है। नमन ने हंसते हुए कहा कि माँ सब ठीक है मुझे कोई परेशानी नही होती है।
एक दिन नमन के घर में उसके जन्मदिन की पूजा थी उसकी माँ ने कहा कि बेटा आज तो छूट्टी ले लो। नमन ने कहा कि माँ इतने छोटे से काम के लिये मैं बच्चों की पढ़ाई बाधित नही कर सकता हूँ और वह स्कूल चला गया।
समय बीतता गया एक दिन बरसात के समय रात को खूब बरसात हुई तो देहरादून से कोई भी शिक्षक आ नही सके क्योकि सभी रास्ते टूट गए थे, नमन गाँव में ही था वह स्कूल गया और वँहा पर जो बच्चे स्कूल आये थे उन्हें पढ़ाया और कहा कि बाकी सब बच्चे शाम को गांव के पंचायत भवन में पढ़ने आ जाना। गाँव के लोग नमन से बहुत प्रभावित थे।
अगले दिन फिर स्कूल खुला सभी शिक्षक और विद्यार्थी स्कूल आ गए, प्रधानाचार्य ने नमन को कहा कि नमन तुम अच्छा काम तो कर रहे हो लेकिन बच्चों की जान जोखिम में मत डाला करो। नमन ने कहा कि सर मैंने बच्चों को शाम को पढ़ाया है, उन्ही के गाँव के पंचायत भवन में। मौसम बरसात का है हर रोज बारिश होती है तो रोज अवकाश भी नही कर सकते।
नमन ने सभी शिक्षकों के सामने कहा कि ये बच्चे मेरे लिए सिर्फ बच्चे नहीँ बल्कि भगवान स्वरूप है, आज इन्ही बच्चों की वजह से मेरा घर परिवार मेरी रोजी रोटी, मेरी इज्जत मेरी शिक्षा सब इन पर निर्भर हैं, ये बच्चे ही तो हमारे जीवन के आधार हैं, इनके साथ हम अन्याय नही कर सकते हैं।
हमारे बच्चे तो देहरादून में रहकर पढ़ते हैं, हम उन्हें ट्यूशन भी महंगी देते हैं, और तब भी हम उनसे एक अभिभावक के तौर पर खुश नही है। जिस तरह हमारे बच्चे हैं उसी तरह सभी अभिभावकों के बच्चे हैं इनके जीवन का एक एक पल हमसे जुड़ा है, अगर हम इनके साथ धोखा करते हैं तो हम खुद की रोजी रोटी से धोखा करेगे। एक वेतन लेकर हम अपने कर्तव्यों की इतिश्री नही कर सकते हैं।
आज शिक्षक दिवस पर हम लोग बधाई औऱ उपहार लेने के हकदार तभी है जब हम विद्यार्थी को वास्तव में मन से पढ़ा रहे हैं। यह कहते कहते नमन की आंखे नम हो गयी क्योकि एक शिक्षक बनाने के लिये उसके शिक्षक ने उसके लिये त्याग किया था। उसके आदर्श शिक्षक रामरतन काला जी आज नमन को बहुत याद आये। क्योकि काला जी ने नमन को अपने अनुभवी जीवन से सच्ची शिक्षा दी थी। एक साल बाद नमन को उसके शिक्षा के प्रति अगाध प्रेम के लिये राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए नवाजा गया।
©® @ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।