पुस्तक में बोले हरीश रावत, मैं कांग्रेस में बालिका-वधू की तरह आया, अब दादी मां
-पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की पुस्तक ‘मेरा जीवन लक्ष्य उत्तराखंडियत’ का विमोचन जगद्गुरु शंकराचार्य राजराजेश्वराश्रम महाराज ने किया। जगद्गुरु शंकराचार्य ने कहा कि पुस्तक के रूप में हरीश रावत ने शोधग्रंथ तैयार किया है, इसलिए इसे हर विद्यालय में होना चाहिए ताकि हमारे बच्चे बचपन से ही उत्तराखंडियत को समझ सकें।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपनी किताब ‘मेरा जीवन लक्ष्य उत्तराखंडियत’ की शुरुआत कुछ इसी अंदाज में की है कि वर्ष 1969 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करने के बाद आज 54 वर्ष हो गए। मैं कांग्रेस में बालिका-बधू की तरह आया था और आज कांग्रेस की दादी मां बन गया।
वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री किताब की प्रस्तावना ‘एक हरीश पर कथा अनंता’ में लिखते हैं, हैं, सही मायने में अगर उत्तराखंड को जानना है तो हरीश रावत की यह किताब उनके लिए बेहद उपयुक्त हो सकती है। किताब में हरीश के अनुभवों का खजाना है तो उत्तराखंड की संस्कृति, विरासत, प्रकृति और पर्यावरण के प्रति उनके लगाव की प्रतिबद्धता भी झलकती है। उनके मन में उत्तराखंड के लिए बहुत कुछ करने की ललक के साथ अपने सीमित कार्यकाल में बहुत कुछ न कर पाने का दर्द भी है।
हरीश रावत की किताब में सिर्फ राजनीतिक चालबाजियों और अपनी सरकार की उपलब्धियों का जिक्र नहीं है, कई लेखों में उत्तराखंड के गांव और दूरदराज के इलाकों के जीवन संघर्षों, चुनौतियों, पिछले तीन-चार दशकों में आए सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक बदलाव का भी चित्रण किया गया है। हरीश रावत की किताब में राज्य की राजनीति और उसकी उठापटक के किस्से हैं तो हिमालय की गोद में बसे इस खूबसूरत राज्य के समाज, संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, यहां के महापुरुषों, भाषा, संगीत, नृत्य, खेलकूद का परिचय भी बेहद करीब से कराया गया है।
इतना ही नहीं हरीश रावत अपनी इस यात्रा में देवभूमि की नदियों, पहाड़ों, झरनाें, तीर्थ, लोक परंपराओं, त्योहार, महान विभूतियों से रूबरू कराते हुए किसी अनंत विचार यात्रा पर आगे बढ़ते हैं, जिसमें जितना गहरे उतरें, उतना ही और गहराई में जाने का मन करता है। कुल मिलाकर पूरी किताब हमको हरीश रावत के साथ उत्तराखंड के इतिहास, भूगोल, संस्कृति और समाज की यात्रा पर ले चलने का रोचक माध्यम बनकर आई है। यह एक ऐसी नदी की तरह है, जिसके किनारे पर बैठकर सिर्फ लहरें गिनने से ज्यादा आनंद उसमें डुबकी लगाने और तैरने में है।
आने वाले तूफान का आभास नहीं था
अपनी किताब में हरीश रावत ने कई राजनीतिक कटु प्रसंगों का विस्तार से जिक्र किया है। एक प्रसंग में वह लिखते हैं- बजट प्रस्तुत करते वक्त हमें आने वाले तूफान का आभास नहीं था। दिल्ली वाले एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत लोकतंत्र पर इतना कठोर प्रहार करेंगे, सोचा भी नहीं जा सकता था। धन शक्ति व सत्ता शक्ति का ऐसा नवीन खेल केंद्र सरकार की ओर से शुरू किया गया, जो अकल्पनीय था।
राहुल तपस्वी साधक के रूप में
राहुल गांधी को हरीश रावत ने अपनी किताब में निश्चयशील व्यक्तित्व बताया है जो शिव भक्त हैं। उन्होंने वर्ष 2013 में केदारनाथ जलप्रलय के बाद बाबा केदार के दर पर पैदल पंगडंडियों को पार करते हुए यात्रा पूरी की थी। वे तपस्वी साधक के रूप में दिखाई देते हैं। भाजपा और संघ के हजारों बमवर्षक सोशल मीडिया और नियमित मीडिया पर उन्हें निशाना बनाते हैं। लेकिन, राहुल आज आमजन के सवालों को ध्वनि बनाकर जवाब दे रहे हैं।
सोनिया ने त्याग का महान उदाहरण पेश किया
सोनिया गांधी का जिक्र करते हुए हरीश ने अपनी किताब में लिखा है कि वर्ष 2004 में जब यूपीए की सरकार बनी, सभी घटक दल सोनिया को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे। कांग्रेस के सभी सांसद उन्हें प्रधानमंत्री देखना चाहते थे। लेकिन, उन्होंने त्याग का महान उदाहरण पेश किया।
नारायण दत्त तिवारी के करीब थे हरीश रावत
कांग्रेस की राजनीति में हरीश रावत को नारायण दत्त तिवारी का मुखर विरोधी माना जाता रहा है। लेकिन, यह बात भी सच है कि हरीश कभी नारायण दत्त तिवारी के बहुत करीबी थे। हरीश ने लिखा है कि किस तरह से एनडी के संपर्क में वह आए और आगे चलकर तिवारी उनके आदर्श पुरुष बन गए।
गैरसैंण राजधानी, पुण्य ही पुण्य है
हरीश रावत ‘मेरा जीवन लक्ष्य उत्तराखंडियत’ में गैरसैंण का दर्द को बयान करना नहीं भूले। किताब की भूमिका में ही उन्होंने गैरसैंण को उत्तराखंडी सर्वांगीण विकास की गंगा की मिसाल दी। लिखा, गैरसैंण की गंगा पूरा गोता नहीं लगा पाया। फिर सवाल छोड़ा क्या हमारी सांसों के थमने के बाद राजधानी गैरसैंण का सपना साकार होगा? ये बातें उन्होंने पुस्तक की भूमिका में लिखी हैं। पुस्तक के 16वें पन्ने पर उन्होंने लिखा, गैरसैंण राजधानी, पुण्य ही पुण्य है। गैरसैंण उत्तराखंडी सर्वांगीण विकास की गंगा है।
कब होगा राजधानी गैरसैंण का सपना साकार
गैरसैंण की गंगा से मैं कुछ ही अंजलि जल लेकर नहा पाया, पूरा गोता नहीं लगा पाया। कल कोई अवश्य आएगा, साहस दिखाएगा। मुझे उम्मीद है, इस अधूरे संकल्प को अवश्य पूरा किया जाएगा। मेरे मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद गैरसैंण में राजधानी निर्माण से संबंधित सारे निर्णयों पर काम बंद है। सत्ता को गैरसैंण पर आगे बढ़ना चाहिए अन्यथा उत्तराखंड को आगे बढ़कर खुद नेतृत्व संभालना चाहिए, उम्र बीत रही है। मन कह रहा है। कब होगा राजधानी गैरसैंण का सपना साकार। क्या हमारी सांसों के थमने के बाद? वे पुस्तक संघर्ष का आह्वान करते हैं। पुस्तक में लिखा, संघर्ष की जागर लगाइए।