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हिंदी…मां के प्यार और पापा के दुलार की तरह…

हिंदी दिवस पर विशेष…

आभा चौहान, अहमदाबाद (गुजरात)

14 सितंबर! जी हां आज हिंदी दिवस है। हम सब 1953 से लगातार 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाते आ रहे हैं। लेकिन, यह बात तो हम सबको पता है। क्यों हम हिंदी को वर्ष में 1 दिन ही याद करते हैं। क्यों न हम रोज हिंदी दिवस मनाए। हमारी राजभाषा होते हुए भी आज लोगों को न जाने क्यों हिंदी बोलने में शर्म आने लगी है। क्यों भूल गए हैं, हिंदी हमसे नहीं हम हिंदी से हैं। अंग्रेजी को बढ़ावे के चलते हिंदी में एक अजब सी कमजोरी आ गई है। लोग भूल गए हैं कि हिंदी हमारे लिए क्या है?

आज से 20 साल पहले बच्चों को विशेष रूप से हिंदी नहीं पढ़ानी पड़ती थी। बहुत कुछ अपने आप ही सीख जाते थे। आज हालात ऐसे हैं कि बच्चों को हिंदी विषय को पढ़ाने के लिए अधिक जोर दिया जाता है, क्योंकि उनका झुकाव दूसरी भाषा की तरफ अधिक है। जब तक हम यह नहीं महसूस करेंगे कि हिंदी हमारे लिए क्या है? हमारा उसके प्रति रुझान कम होता जाएगा। मैं आपको यह बताना चाहती हूं कि मेरे लिए हिंदी क्या है? मेरी मातृभाषा है यह मेरे लिए मेरे मां की पुकार और मेरे पापा दुलार की तरह है। मीराबाई के भजन, रहीम के दोहे व रामायण की चौपाइयां यह भी तो हिंदी है। हमारे नानी-दादी के किस्से हमने हिंदी में ही तो सुने हैं। हिंदी तो संस्कृत की बेटी है जो रंग रूप में बिल्कुल अपनी मां पर गई है। मुझसे जब कोई कहता है कि हिंदी के बारे में बात करो, ऐसा लगता है कि जैसे बोल रहा है कि अपने मां के बारे में कुछ बताओ। हिंदी मेरी मां है, हिंदी मेरे रोम-रोम में है।
जय हिंद

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